इंदिरा गांधी को पूरी दुनिया ‘आयरन लेडी’ के नाम से जानती है. करीब दो दशक तक देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा को उनके कड़े फैसलों की वजह से यह नाम मिला था. साल 1971 में पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर देने वाली इंदिरा ने दुनिया को भारतीय सेना की ताकत का एहसास कराया था.
आजाद भारत के इतिहास में साल 1975 से 1977 तक लगाए गए “आपातकाल” को लोकतंत्र का दुर्भाग्यपूर्ण दौर कहा जाता है. इस दौरान सत्ता के खिलाफ उठ रही तमाम आवाजों को न केवल दबा दिया जाता था, बल्कि सरकार की खिलाफत करने वाले लोगों का दमन किया जाता था. सरकार की मनमानियां, बेतहाशा गिरफ्तारियां आदि इस दौर की नियति थी.
यह जानकर आश्चर्य होता है कि देश में आपातकाल लगाए जाने का इतना बड़ा फैसला महज कुछ घंटों के भीतर ले लिया गया था. तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अहमद से हस्ताक्षर लेकर देश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था.
इसके पीछे का कारण इंदिरा गांधी को दी गई चुनौती थी, जो इंदिरा बर्दाश्त नहीं कर पाईं और सत्ता हाथ से निकल जाने के डर से इतना बड़ा फैसला ले लिया. तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को लगने लगा था कि अब देश की जनता उनके विरोध में उतर चुकी है और इसलिए उन्होंने अपने खिलाफ उठ रही आवाजों को दबाने के लिए आपातकाल की मदद ली.
लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी से हारे राज नारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस दाखिल कर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया था. तब के जाने- माने वकील रहे शांतिभूषण ने उनकी तरफ से केस लड़ा और हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को दोषी मानते हुए फैसला सुनाया- हाईकोर्ट ने कहा कि इंदिरा की लोकसभा सदस्यता खत्म की जाए और छह सालों तक चुनाव लड़ने के लिए वह अयोग्य मानी जाएं.
इस फैसले को इंदिरा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पूरी होने तक उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की इजाजत दी, लेकिन कई शर्तें भी लगाईं. 24 जून 1975 को ऐसा हुआ और इसके अगले ही दिन मोरारजी देसाई और जयप्रकाश नारायण ने उनके खिलाफ बड़ा जनांदोलन छेड़ दिया.
इस बीच इंदिरा को उनकी कुर्सी हिलने का एहसास हो चुका था और उन्होंने माहौल को भांपते हुए 25 जून की आधी रात तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर लेकर आपातकाल की घोषणा कर दी। तत्कालीन कैबिनेट से चर्चा किए बगैर ही यह घोषणा कर दी गई। कुछ घंटों के भीतर तमाम अखबारों के कार्यालयों की बिजली काट दी गई और विरोधी नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू कर दी गई.
लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई भाजपा नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया था. जेल में ही वाजपेयी ने ‘अनुशासन के नाम पर अनुशासन का खून/ भंग कर दिया संघ को, कैसा चढ़ा जुनून’ जैसी कविताएं लिखीं. वरिष्ठ पत्रकार कूमी कपूर की किताब के मुताबिक 1975 में तत्कालीन सरकार को चकमा देकर भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी सरदार के वेश में अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पहुंचे थे. वहां 25 वर्षीय नरेंद्र मोदी ने वेश बदलकर उन्हें सुरक्षित ठिकाने तक ले जाने में मदद की थी.आपातकाल के दौरान एक समुदाय की जबरन नसबंदी भी क्र दी गई.
साल 1977 में आपातकाल खत्म हुआ और आम चुनाव हुए. सरकार तो जनता पार्टी की बनी, लेकिन जैसे-तैसे ढाई-तीन साल सरकार चली और फिर साल 1980 में ‘मजबूत सरकार’ के वादे पर कांग्रेस एक बार फिर से सत्ता में आ गई। इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं और उनकी सरकार होने के कारण आपातकाल लगाए जाने को लेकर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी.