दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को दोषी करार दिया। यह मामला 1 नवंबर 1984 को सरस्वती विहार क्षेत्र में पिता-पुत्र की हत्या से संबंधित है। इससे पहले, सज्जन कुमार दिल्ली कैंट इलाके के एक अन्य दंगा मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।
विशेष न्यायाधीश कावेरी बवेजा ने सुनाया फैसला
विशेष न्यायाधीश कावेरी बवेजा ने यह निर्णय सुनाया और सज्जन कुमार को दोषी करार दिया। उन्हें भौतिक रूप से अदालत में पेश किया गया।
इससे पहले, 31 जनवरी को लोक अभियोजक मनीष रावत द्वारा अतिरिक्त दलीलें पेश करने के बाद अदालत ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
मामले से जुड़े प्रमुख तथ्य
यह मामला सरस्वती विहार क्षेत्र में जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह की हत्या से जुड़ा हुआ है।
सज्जन कुमार की ओर से अधिवक्ता अनिल शर्मा ने दलील दी कि सज्जन कुमार का नाम शुरू से ही प्राथमिकी (FIR) में नहीं था, और गवाह द्वारा उनका नाम लेने में 16 साल की देरी हुई।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा सज्जन कुमार को दोषी ठहराने के फैसले के खिलाफ अपील वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
लोक अभियोजक की दलील— गवाह को बाद में हुई सज्जन कुमार की पहचान
अतिरिक्त लोक अभियोजक मनीष रावत ने तर्क दिया कि पीड़िता सज्जन कुमार को पहले से नहीं जानती थी। जब उन्हें यह पता चला कि सज्जन कुमार कौन हैं, तब उन्होंने अपने बयान में उनका नाम लिया।
पीड़ितों के वकील ने पुलिस जांच पर उठाए सवाल
वरिष्ठ अधिवक्ता एच.एस. फुल्का ने दंगा पीड़ितों की ओर से पेश होते हुए तर्क दिया कि सिख विरोधी दंगों की पुलिस जांच में हेरफेर किया गया था ताकि आरोपियों को बचाया जा सके। उन्होंने कहा कि दंगों के दौरान स्थिति असामान्य थी, इसलिए इन मामलों को उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह कोई अलग-थलग घटना नहीं थी, बल्कि यह एक बड़े नरसंहार का हिस्सा था और इसे “नरसंहार” (genocide) के रूप में देखा जाना चाहिए।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का हवाला
वरिष्ठ अधिवक्ता फुल्का ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें 1984 के दिल्ली कैंट मामले को “मानवता के खिलाफ अपराध” करार दिया गया था।
उन्होंने कहा कि सिख समुदाय को निशाना बनाया गया और यह नरसंहार का हिस्सा था।
एसआईटी जांच और चार्जशीट पर गंभीर सवाल
वरिष्ठ अधिवक्ता ने यह भी दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले में देरी को गंभीरता से लिया और एक विशेष जांच टीम (SIT) का गठन किया।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि सज्जन कुमार के खिलाफ 1992 में चार्जशीट तैयार कर ली गई थी, लेकिन इसे अदालत में दाखिल नहीं किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पुलिस ने उन्हें बचाने की कोशिश की।
गवाह के बयान और जांच का निष्कर्ष
1 नवंबर 2023 को अदालत ने सज्जन कुमार का बयान दर्ज किया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से इनकार किया।
मूल रूप से यह मामला पंजाबी बाग थाने में दर्ज एफआईआर से जुड़ा था, लेकिन जस्टिस जी.पी. माथुर समिति की सिफारिश पर गठित एसआईटी ने दोबारा जांच के बाद चार्जशीट दायर की।
यह समिति 1984 के सिख दंगों से जुड़े 114 मामलों को फिर से खोलने की सिफारिश के लिए गठित की गई थी, और यह मामला उनमें से एक था।
सज्जन कुमार पर किन धाराओं के तहत आरोप तय किए गए?
16 दिसंबर 2021 को अदालत ने सज्जन कुमार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की निम्नलिखित धाराओं के तहत आरोप तय किए:
- धारा 147, 148, 149 (दंगा और गैरकानूनी भीड़)
- धारा 302 (हत्या), 308 (हत्या का प्रयास), 323 (मारपीट)
- धारा 395 (डकैती), 397 (घातक हथियार से डकैती)
- धारा 427, 436, 440 (संपत्ति को नुकसान और आगजनी)
एसआईटी के निष्कर्ष
एसआईटी की रिपोर्ट में कहा गया कि सज्जन कुमार दंगा भड़काने वाली भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे, और उनके उकसाने और सहयोग से भीड़ ने जसवंत सिंह व उनके बेटे को जिंदा जला दिया।
भीड़ ने उनके घर को लूट लिया, संपत्तियों को जलाया और उनके परिवार के सदस्यों को गंभीर चोटें पहुंचाईं।
जांच के दौरान प्रमुख गवाहों को चिन्हित किया गया और उनके बयान दर्ज किए गए।
23 नवंबर 2016 को दर्ज शिकायतकर्ता के बयान में उन्होंने दोबारा लूट, आगजनी और हत्याओं का उल्लेख किया, जिसमें उनके पति और बेटे को भीड़ द्वारा मार दिए जाने की बात कही गई।
पीड़िता ने यह भी बताया कि लगभग डेढ़ महीने बाद उन्होंने एक पत्रिका में आरोपी की तस्वीर देखी, जिससे उन्होंने सज्जन कुमार की पहचान की।
अगली सुनवाई पर रहेगा सबकी नजर
कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद अब सजा पर बहस होगी, जिसके बाद सज्जन कुमार की सजा का ऐलान किया जाएगा।
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