वाराणसी : काशीपुराधि बाबा विश्वनाथ को सावन माह अतिशय प्रिय है। सावन मास भोलेनाथ का प्रिय मास है, पूरा सावन माह महादेव को समर्पित रहता है। सावन माह के सभी सोमवार, प्रदोष, तेरस (त्रयोदशी) एवं चतुर्दशी पर महादेव की आराधना के लिए शिवभक्त लालायित रहते है।
इन दिनों में महादेव की विशेष पूजा, व्रत, रूद्राभिषेक, जलाभिषेक, शिवाचरणसनातन धर्म में लगभग सभी घरों में होता है।
इस बार सावन माह की शुरुआत 25 जुलाई रविवार से हो रही है। कृष्ण पक्ष की द्वितीया और शुक्ल पक्ष की नवमीं तिथि का क्षय होने के कारण सावन माह 29 दिन का है। माह में कृष्ण पक्ष पूरे 15 दिन का होगा। वहीं शुक्ल पक्ष 14 दिन का है।
दिव्य मास सावन में चार सोमवार पड़ रहा है। सावन का पहला सोमवार 26 जुलाई को, दूसरा सोमवार 02 अगस्त को, तीसरा सोमवार 09 अगस्त और चौथा 16 अगस्त को है।
काशी में नियमित ॐ नमः शिवाय प्रभात फेरी निकालने वाले शिवाराधना समिति के संस्थापक अध्यक्ष डॉ मृदुल मिश्र ने बताया कि सावन माह के सभी सोमवार पर भगवान शिव का विशेष पूजन अनुष्ठान और व्रत करने से विशेष फल मिलता है।
महादेव अपनी पूजा से प्रसन्न होकर शिवभक्तों के अनिष्ट, अकाल मृत्यु को अपनी विशेष कृपा से हर लेते हैं। सायं काल प्रदोष काल में महादेव की पंचोपचार व षोडशोपचार पूजा, शिव महिमागान, शिव स्तोत्र, शिव चालीसा, शिव महिमा स्तोत्र का पाठ करने से मन को जहां शान्ति मिलती है। वहीं, शिव कृपा भी प्राप्त होती है।
डॉ मृदुल मिश्र ने बताया कि जीवन में आरोग्य के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। सावन माह में प्रतिदिन 21 बेलपत्रों पर चंदन से ‘ऊं नम: शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
उन्होंने बताया कि सोम प्रदोष व्रत के रखने से शिवभक्तों के सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। व्रत की कथा सुनने मात्र से ही गौ दान के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
डॉ मिश्र ने पौराणिक कथा कर जिक्र कर बताया कि सावन मास में ही देवताओं और असुरों में समुद्र मंथन किया गया था। इस दौरान जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने अपने कंठ में समाहित कर पूरे सृष्टि की रक्षा की थी।
विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने महादेव को जल अर्पित किया था। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि सावन मास में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।