मा. न्यायमूर्ति प्रेम शंकर गुप्ता जी का उच्च न्यायालय में लगभग ४००० निर्णय हिन्दी में देकर हिन्दी भाषा के प्रति  अभूतपूर्व योगदान रहा –

मा. न्यायमूर्ति प्रेम शंकर गुप्ता जी का उच्च न्यायालय में लगभग ४००० निर्णय हिन्दी में देकर हिन्दी भाषा के प्रति अभूतपूर्व योगदान रहा –

हिन्दी भाषा पखवाड़ा पर विशेष-

न्यायमूर्ति श्री प्रेम शंकर गुप्त हिन्दी में निर्णय देने का प्रशंसनीय कार्य किया और इसके चलते बहुत प्रसिद्ध हुए।

वे उच्च न्यायालय के अधिवक्ता, न्यायाधीश एवं हिन्दी के प्रबल पक्षधर व मनीषी के रूप में जाने जाते हैं। हिन्दी, अन्य भारतीय भाषायें व साहित्य उनके हृदय की धड़कन है।

राष्ट्र भक्ती उनके सांस्कृतिक व्यक्तित्व को एक मुखर तेजस्विता प्रदान करती है और राष्ट्रभाषा के लिए उनकी प्रतिबद्धता उनके व्यक्तित्व को विशेष रूप से परिभाषित करती है।

न्यायमूर्ति प्रेम शंकर गुप्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि स्नातक हैं। न्यायाधीश नियुक्त होने से पूर्व उन्होंने भारत के राज्य और केंद्र सरकारों में अधिवक्ता के रूप में काम किया। 1977 में उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

उन्होंने तभी से न्यायाधीश के रूप में राजभाषा हिंदी में अपने निर्णय देना प्रारंभ किया था और अपने लगभग 15 वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने लगभग 4000 निर्णय हिंदी भाषा में दिए। उन्हें उनके सराहनीय कार्यों के लिए अनेक अवसरों पर सम्मानित किया गया।

जीवन परिचय-

न्यायमूर्ति श्री गुप्त जी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले इटावा में एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में दिनांक १५ जुलाई १९३० को हुआ था।

आपने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा इटावा नगरी में पूर्ण करने के उपरान्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक एवं फिर विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र के रूप में ही प्रेम शंकर जी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़ गये।

आपने विधि को सच्चे हृदय से अपनाया और पूरी लगन के साथ वर्ष १९५१ से विधि व्यवसाय में वकील के रूप में अपनी गृह नगरी इटावा में कार्य प्रारम्भ किया और वर्ष १९६२ में अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत हुए। कुछ ही समय में उन्होंने अधिवक्ता के रूप में अपनी एक विशेष पहचान बना ली।

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उत्तर प्रदेश सरकार ने आपको वर्ष १९६४ में जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) जनपद इटावा नियुक्त किया। जिस पद पर आप वर्ष १९७१ तक कुशलता से कार्य करते रहे।

उन्नीस सौ सत्तर के दशक के प्रारम्भ में श्री गुप्त जनपद इटावा में भरी पूरी वकालत छोड़कर उच्च न्यायालय इलाहाबाद में वकालत करने आये तो उस समय उच्च न्यायालय में अंग्रेजी का ही प्रभुत्व था और कोई सोच भी नहीं सकता था कि उच्च न्यायालय में हिन्दी में भी बहस हो सकती है, लेकिन श्री गुप्त जी ने यह प्रमाणित किया कि प्रतिभा किसी विशेष भाषा की मोहताज नहीं है और निज भाषा में की गयी अभिव्यक्ति अंग्रेजी में किये गये तर्कों से अधिक प्रभावशाली हो सकती है।

शीघ्र ही गुप्त जी को उत्तर प्रदेश शासन ने उपशासकीय अधिवक्ता, उच्च न्यायालय इलाहाबाद, फिर शासकीय अधिवक्ता खण्ड पीठ लखनऊ व बाद में शासकीय अधिवक्ता उच्च न्यायालय इलाहाबाद नियुक्त किया।

इस पद पर आप निरन्तर १९७१ से १९७७ तक कार्यरत रहे। इस कार्यकाल में केन्द्रीय जॉच ब्योरो के स्पेशल काउन्सिल के रूप में आपने वर्ष १९७४ से १९७७ तक प्रसिद्ध आनन्द मार्गी केस (पी.सी. सरकार) की पटना सत्र न्यायालय में अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी की, तत्पश्चात वर्ष १९७७ में वरिष्ठ विशेष अधिवक्ता के रूप में ललित नारायण मिश्र हत्याकाण्ड में अभियोजन पक्ष को कुशलता से प्रस्तुत किया।

इससे पूर्व श्री गुप्त ने फौजदारी के प्रसिद्ध केस शमीम रहमानी की अपील में उच्च न्यायालय इलाहाबाद में राज्य की ओर से पैरवी अपने तर्कों को हिन्दी भाषा में प्रस्तुत करके की थी जिसे उच्च न्यायालय में स्मृत किया जाता है।

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भारत गणराज्य के राष्ट्रपति ने आपके विधिक दृष्टिकोण व मौलिक ज्ञान को ध्यान में रखते हुए आपको दिनांक १७.११.१९७७ को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का स्थाई न्यायाधीश नियुक्त किया। आप इस पद पर अपनी सेवानिवृत्ति १४.०७.१९९२ तक बने रहे।

इस बीच कुछ समय के लिए आप दो बार कार्य वाहक मुख्य न्यायाधीश भी रहे। विधि क्षेत्र की इस यात्रा का वर्णन आपके हिन्दी प्रेम को दर्शाये बिना निश्चित रूप से अपूर्ण ही है। न्यायमूर्ति के रूप में आपका राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति योगदान अमूल्य रहा है।

आपने उच्च न्यायालय में परम्परागत अंग्रेजी में निर्णय देने की परिपाटी से अलग हठते हुए हिन्दी में निर्णय देना प्रारम्भ किया। हिन्दी प्रेमियों के लिए यह एक प्रेरणा का श्रोत था। परिणाम स्वरूप उच्च न्यायालय में जहॉ केवल अंग्रेजी भाषा में कार्य होता था, अधिवक्तागण व अधिकारियों ने हिन्दी में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया।

आपने १५ वर्ष के अपने न्यायमूर्ति के कार्यकाल में लगभग ४ हजार से अधिक निर्णय राष्ट्रभाषा हिन्दी में देकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है।

न्यायमूर्ति श्री प्रेम शंकर जी का हिन्दी प्रेम उन्हें बचपन में ही प्राप्त हो गया था। इटावा के सनातन धर्म स्कूल में जब वे अध्ययनरत थे तभी उनकी कक्षा के अध्यापक उनके गुरू स्वर्गीय श्री शिशुपाल सिंह भदौरिया ´शिशु´ ने स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय रचित अपनी भावपूर्ण एवं ओजस्वी कविताओं के माध्यम से विद्यार्थियों में राष्ट्र प्रेम एवं राष्ट्रभाषा प्रेम का जो बीज बोया उसे न्यायमूर्ति श्री गुप्त जी ने अपने जीवन में पूर्णत: आत्मसात कर लिया एवं जीवन पर्यन्त उसी में वे रम गये।

श्री प्रेम शंकर गुप्ता जी के पुत्र श्री माननीय न्यायमूर्ति अशोक कुमार जी वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष के रुप में कार्यरत है।

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“न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्त जी मुझे अनुज कहकर पुकारते थे। वह अक्सर कहा करते थे कि किसी विषय पर बोलने से पहले उसकी तैयारी जरूरी है। बिना तैयारी के उस विषय पर बोलने का मतलब होता है कि हम वहां अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन कर रहे हैं। निर्भीकता उनके रोम रोम में बसी थी और हिंदी के प्रति समर्पण का भाव था।”

केशरीनाथ त्रिपाठी, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष

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