बुधवार को संसद के शीतकालीन सत्र में शून्यकाल के दौरान कानपुर के एक सांसद श्री सत्यदेव पचौरी ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा का मुद्दा उठाया।
उन्होंने कहा कि वह इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि देश भर के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में हमारी राष्ट्रीय भाषा हिंदी के उपयोग की कमी है। उन्होंने कहा कि जब भारत स्वतंत्र हुआ तो यह मुद्दा उठाया गया लेकिन यह तय किया गया कि अदालतें कुछ समय तक अंग्रेजी का इस्तेमाल करती रहेंगी।
हालाँकि, संविधान निर्माताओं ने यह प्रावधान किया था कि संसद जब चाहे तब हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग का निर्देश दे सकती है।
उन्होंने आगे कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी सुप्रीम कोर्ट सिर्फ अंग्रेजी का ही इस्तेमाल कर रहा है।
श्री सत्यदेव पचौरी ने बताया कि निचली अदालतें स्थानीय भाषा का प्रयोग जारी रखती हैं और अन्य अदालतों में भी ऐसा ही किया जा सकता है।
श्री पचौरी के अनुसार, मजदूर और किसान जैसे आर्थिक रूप से कमजोर लोग नुकसान में हैं क्योंकि यदि वे न्याय पाने के लिए उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं, तो वे यह नहीं समझ पाएंगे कि न्यायाधीश या अधिवक्ता क्या कह रहे हैं।