सिर्फ इद्दत में ही नहीं, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को मिले जीवन भर भत्ता, इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस अजहर हुसैन इदरीसी के डबल बेंच ने गाजीपुर की तलाकशुदा मुस्लिम महिला की अर्जी पर सुनवाई के बाद ये आदेश दिया है। .

तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के गुजारे भत्ते को लेकर उच्च न्यायालय ने अत्यंत ही महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सिर्फ इद्दत की अवधि यानी साढ़े तीन महीने ही नहीं, बल्कि जीवन भर गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है। फैसले के मुताबिक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से सिर्फ जीवन भर गुजारा भत्ता पाने की ही हकदार नहीं है, बल्कि गुजारा भत्ते की रकम इतनी होनी चाहिए, जिसमें वह पहले जैसी सम्मानजनक जिंदगी जी सके।

कोर्ट ने अहम् टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस सिर्फ धर्म के आधार पर मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।

इलाहाबाद उच्च न्यायलय के दिए निर्णय के मुताबिक से गुजारा भत्ते के साथ ही तलाकशुदा मुस्लिम महिला मेहर की रकम और शादी में मिले सभी उपहार को भी पाने की हकदार रहेगी। अदालत ने कहा है कि गुजारा भत्ता इतना पर्याप्त होना चाहिए कि तलाकशुदा महिला के रहने – खाने -कपड़ों व अन्य जरूरतों को आसानी से पूरा किया जा सके। अदालत ने अपने फैसले में यह साफ किया है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला जीवन भर गुजारा भत्ते को पाने की हकदार तभी होगी जब उसने दूसरी शादी ना की हो। दूसरी शादी करने की सूरत में वह पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं रह पाएगी।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजीपुर पारिवारिक न्यायालय के सिर्फ इद्दत की अवधि तक ही गुजारा भत्ता दिलाने के आदेश को अवैध करार देते हुए इसे रद्द कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि गाजीपुर पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने वैधानिक उप उपबंधों व साक्ष्यों का सही परिशीलन किए बगैर ही आदेश जारी किया था।

प्रस्तुत मामले में यह आदेश न्यायाधीश सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायाधीश अजहर हुसैन इदरीसी की डिवीजन बेंच ने गाजीपुर की तलाकशुदा मुस्लिम महिला जाहिद खातून की अर्जी पर सुनवाई के बाद दिया है। मामले के मुताबिक गाजीपुर की रहने वाली जाहिद खातून की शादी 1989 में नूरुल हक खान के साथ हुई थी। नूरुल हक डाक विभाग में कर्मचारी है। तकरीबन 11 साल तक साथ रहने के बाद पति नूरुल हक ने याचिकाकर्ता पत्नी जाहिद खातून को ट्रिपल तलाक दे दिया। इसके बाद जाहिद खातून ने गुजारा भत्ता दिए जाने की मांग को लेकर गाजीपुर में Magistrate की कोर्ट में अर्जी दाखिल की। साल 2014 में यह मुकदमा गाजीपुर की ही फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर हो गया।

जिला गाजीपुर की फैमिली कोर्ट ने पिछले साल 15 सितंबर को इस मामले में फैसला सुनाते हुए मुस्लिम महिला विवाह विच्छेदन पर अधिकार संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत याचिकाकर्ता जाहिद खातून को सिर्फ इद्दत की अवधि यानी 3 महीने और 13 दिन तक पन्द्रह सौ रुपए प्रति महीने की दर से गुजारा भत्ते का भुगतान करने का आदेश जारी किया। पत्नी ज़ाहिदा खातून ने गाजीपुर फैमिली कोर्ट के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को सुनवाई पूरी होने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया था।

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हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने गाजीपुर की फैमिली कोर्ट को अपने आदेश के तहत अब नये सिरे से गुजारा भत्ता तय किए जाने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने निचली अदालत को इसके लिए तीन महीने की मोहलत दी है। अदालत के फैसले के मुताबिक निचली अदालत से गुजारा भत्ते की रकम तय किए जाने तक पूर्व पति नूरुल हक खान को याचिकाकर्ता जाहिद खातून को हर महीने ₹5000 का गुजारा भत्ता देना होगा।

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