संविधान की प्रस्तावना को उसकी आत्मा कहा जाता है. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए 1976 में 42वां संविधान संशोधन किया गया. देश में उस समय आपातकाल लगा हुआ था . इसी दौरान संविधान की प्रस्तावना में 3 नए शब्द समाजवादी ,धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया.
संविधान की प्रस्तावना को उसकी आत्मा कहा जाता है. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए 1976 में 42वां संविधान संशोधन किया गया. देश में उस समय आपातकाल लगा हुआ था. इसी दौरान संविधान की प्रस्तावना में 3 नए शब्द समाजवादी,धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया.
स्वर्ण सिंह कमेटी की सिफारिश के आधार पर 10 मौलिक कर्तव्य को शामिल किया गया.
इसके अलावा सातवीं अनुसूची के अंतर्गत समवर्ती सूची राज्य सूची से पांच विषयों को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया-
शिक्षा
वन
वजन और माप
वन्यजीवों एवं पक्षियों के संरक्षण
न्याय प्रशासन
नया भाग IV ए (अनुच्छेद 51 ए) जोड़ा गया नागरिकों के लिए 10 मौलिक कर्तव्य जोड़े गए। (नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को 1976 में सरकार द्वारा गठित स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर जोड़ा गया था).
शिक्षा, जंगल, जीवन की रक्षा, नापतोल यंत्र तथा न्यायिक प्रशासन जैसे विषयों पर केंद्र और प्रदेश दोनों को कानून बनाने का अधिकार मिल गया.
इसी वजह से 42 वें संविधान संशोधन को मिनी कांस्टिट्यूशन भी कहा जाता है.
समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़े जाने के कारण-
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42 वें संविधान संशोधन के माध्यम से जो 3 शब्द जोड़े गए थे. समाजवादी शब्द को जोड़ने के पीछे संविधान की मूल भावना का आधार बनाया गया, क्योंकि भारत ने लोकतांत्रिक समाजवाद को अपनाया है. इस समाजवाद में निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र कंधा मिलाकर देश के विकास में भूमिका निभाते हैं. समाजवादी का लक्ष्य है देश से गरीबी ,अज्ञानता, बीमारी और अवसर की असमानता को समाप्त करना.धर्मनिरपेक्ष शब्द को जोड़ने के पीछे यह तर्क दिया गया था कि देश का कोई अपना धर्म नहीं है, यह देश सभी धर्मों का समान रूप से आदर करेगा. भारत में सभी धर्मों को राज्यों से समानता, सुरक्षा और समर्थन पाने का अधिकार है. इसी वजह से इस शब्द को जोड़ा गया. इसके साथ ही अखंडता शब्द को भी आजादी, न्यायिक व्यवस्था समानता और भाईचारे को मजबूत करने के लिए जोड़ा गया.
आखिर 42 वें संविधान संशोधन की क्यों पड़ी जरूरत-
1976 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए आपातकाल के दौर में 42 वें संविधान संशोधन के द्वारा भारत के संविधान की प्रस्तावना में 3 नए शब्द जोड़े गए. उस समय संविधान संशोधन के पीछे यह तर्क दिया गया था कि देश को धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर विकसित करने के लिए इन संशोधनों की जरूरत है.
42 वें संविधान संशोधन के द्वारा ये हुए बदलाव-
42वें संविधान संशोधन को लघु संविधान के रूप में भी जाना जाता है. इसके तहत प्रस्तावना में तीन नए शब्द जोड़े गए थे . यह शब्द है समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता.
- सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर संविधान संशोधन के माध्यम से 10 मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था की गई.
- राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह को मानने के लिये बाध्य का किया गया.
- संवैधानिक संशोधन को न्यायिक प्रक्रिया से बाहर कर नीति निर्देशक तत्त्वों को व्यापक बनाया गया.
यह इंदिरा गांधी सरकार के दौरान अधिनियमित किया गया था. इसे संविधान में सर्वाधिक विवादास्पद संशोधनों में से एक कहा जाता है क्योंकि इसने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की शक्ति को कम करने एवं कई अन्य सामाजिक-राजनीतिक स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध आरोपित करने लगाने का प्रयास किया, जिसे संसदीय विधि द्वारा अनर्ह घोषित किया गया है, तो उसे अनर्ह घोषित कर दिया जाएगा, यह शक्ति राज्य विधानमंडल के स्थान पर संसद में निहित होगी.