दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक मामलों में मध्यस्थता समझौते का मसौदा तैयार करने के लिए दिशा निर्देश जारी किये-

Estimated read time 1 min read

दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी निर्देशित किया कि आईपीसी IPC की धारा 498ए से जुड़े मामलों में, समझौते में उन सभी पक्षों के नाम शामिल होने चाहिए, जिनका नाम एफआईआर FIR में दर्ज किया गया है।

वैवाहिक मामलों में न्यायालयों द्वारा कोशिश रहती है कि दोनों पक्षों में समझौते या मध्यस्थता से निवारण किया जाए। ऐसे ही एक वैवाहिक मामले की सुनवाई के बाद दिल्ली हाई कोर्ट सेटलमेंट एग्रीमेंट का मसौदा तैयार करते समय मध्यस्थों द्वारा पालन करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने एक और महत्वपूर्ण निर्देश दिया और कहा है कि ऐसे समझौतों को अंग्रेजी के अलावा हिंदी भाषा में भी प्रकाशित किया जाना चाहिए।

यह निर्देश जारी करते हुए उन्होंने कहा कि मध्यस्थों के लिए सुसंगतता, निरंतरता और स्पष्टता के साथ समझौतों का मसौदा तैयार करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन विवाद को अविलंब समाप्त करके और विवाद में शामिल पक्षों को भविष्य में मुकदमों से बचाकर “जरूरतमंदों के जीवन को ठीक करने” में काफी मदद करेगा।

कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि-

“वैवाहिक मुकदमेबाजी में उलझे लोगों का जीवन अक्सर उथल-पुथल की स्थिति में होता है, और इस प्रकार, वैकल्पिक विवाद समाधान की एक विधि के रूप में मध्यस्थता को अशांति की स्थिति को और बढ़ाने के बजाय उनके बचाव में आना चाहिए। मसौदा तैयार करने के लिए मध्यस्थों द्वारा आवश्यक मार्गदर्शन सुसंगति, निरंतरता, और अस्पष्टता की डिग्री के साथ समझौते उन लोगों के जीवन को ठीक करने में एक लंबा रास्ता तय करेंगे, जिन्हें इस तरह के उपचार की आवश्यकता है, एक विवाद को तुरंत समाप्त करके और उन्हें भविष्य के मुकदमेबाजी से बचाने के लिए।

ALSO READ -  ट्रायल कोर्ट को 'निचली अदालत' कहना बंद करें, यहां तक कि रिकॉर्ड्स को भी 'निचली अदालत के रिकॉर्ड' के रूप में संदर्भित नहीं किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि-

“इस फैसले के माध्यम से इस न्यायालय का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि स्पष्टता की कमी या समझौते के महत्वपूर्ण पहलुओं पर लापता होने के कारण ऐसे मध्यस्थता समझौतों की चुनौतियां कम से कम हों।”

हाई कोर्ट के निर्देशनुसार, एक मध्यस्थता समझौते में सभी पक्षों के नाम विशेष रूप से होने चाहिए और ‘प्रतिवादी’, ‘प्रतिवादियों’, ‘याचिकाकर्ता’ या ‘याचिकाकर्ताओं’ जैसे शब्दों से बचना चाहिए, कोर्ट ने कहा की इससे अस्पष्टता और आगे मुकदमेबाजी होती है।

कोर्ट के निर्देश में कहा गया कि, “नियमों और शर्तों की पूर्ति की टाइमलाइन के साथ-साथ उन्हें निष्पादित करने की टाइम-लाइन का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए, जहां तक संभव हो कोई अस्थायी तिथियां नहीं होनी चाहिए। समझौते में एक डिफ़ॉल्ट क्लॉज शामिल किया जाना चाहिए और उसके परिणामों को समझाया जाना चाहिए और समझौते में ही सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।”

दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी निर्देशित किया कि आईपीसी IPC की धारा 498ए से जुड़े मामलों में, समझौते में उन सभी पक्षों के नाम शामिल होने चाहिए, जिनका नाम एफआईआर FIR में दर्ज किया गया है। साथ ही यह भी कहा की एफआईआर को रद्द करने के लिए दावों का समग्र रूप से निपटारा किया गया है भी दर्ज किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि समझौते में इस्तेमाल भाषा पार्टियों के वास्तविक इरादे और उन लक्ष्यों को समझने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए जिसे वे समझौते के जरिए हासिल करना चाहते हैं।

मध्यस्थता केंद्रों के संबंधित प्रभारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जहां तक संभव हो अंग्रेजी भाषा के अलावा हिंदी भाषा में भी मध्यस्थता समझौते तैयार किए जाएं।

ALSO READ -  यूपी गैंगस्टर एक्ट की धारा 2(B)(i) के तहत अभियोजन जारी नहीं रखा जा सकता, अगर 'घातक अपराध' का आरोप लगाने वाली FIR रद्द हो जाती है: SC

कोर्ट के अनुसार, ऐसा निर्देश इसलिए जारी किया जाता है क्योंकि अधिकांश मामलों में पक्षकार अंग्रेजी नहीं समझते हैं, और उनकी मातृभाषा हिंदी होती है।

कोर्ट ने कहा, “इस फैसले की एक प्रति प्रभारी, दिल्ली हाईकोर्ट मध्यस्थता और सुलह केंद्र (समाधान) के साथ-साथ दिल्ली के सभी जिला न्यायालयों में सभी मध्यस्थता केंद्रों के संबंधित प्रभारी को ध्यान देने और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अग्रेषित की जाए. एक प्रति निदेशक (अकादमिक), दिल्ली न्यायिक अकादमी को भी भेजी जाए।”

You May Also Like