उड़ीसा उच्च न्यायलय Orissa High Court ने बलात्कार के मामले में एक ऐतिहासिल फैसला सुनाया है। उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी रिश्ते की शुरुआत दोस्ती से होती है और यह रिश्ता आगे बढ़ जाता है। पुरुष, लड़की से शादी का वादा करता है और वह सहमति से शारीरिक संबंध बना लेता है। अगर इसके बाद रिश्ते में घटास आ जाती है तो आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म संबंधी आपराधिक कानून का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। यानी शादी का वादा कर सहमति से शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जायेगा।
यह फैसला न्यायमूर्ति आरके पटनायक की पीठ ने 3 जुलाई को सुनाया। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर किसी रिश्ते में खटास आ जाती है और कोई व्यक्ति अपने साथी से शादी नहीं करने का फैसला करता है, तो पहले हुई शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं माना जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति पटनायक ने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ धोखाधड़ी जैसे अन्य आरोपों को जांच के लिए खुला रखा जाता है। वादे को अच्छे विश्वास में किया जाता है। वादा पूरा न होना और शादी करने के झूठे वादे के बीच एक सूक्ष्म अंतर है।
न्यायमूर्ति आरके पटनायक ने इस कृत्य को शादी के झूठे वादे के तहत यौन संबंध बनाने के विपरीत करार देते हुए कहा, अच्छे विश्वास के साथ किया गया वादा, लेकिन बाद में पूरा नहीं किया जा सकने वाला वादा तोड़ने और शादी का झूठा वादा करने के बीच एक छोटा अंतर है। पहले मामले में ऐसी किसी भी शारीरिक संबंध के लिए आईपीसी IPC की धारा 376 के तहत अपराध नहीं बनता है। जबकि बाद वाले मामले में यह इस आधार पर आधारित है कि शादी का वादा शुरू से ही झूठा या नकली था, जो अभियुक्त द्वारा इस समझ पर दिया गया है कि इसे अंततः तोड़ दिया जाएगा।
अदालत ने शिकायत और अन्य सामग्रियों पर विचार करते हुए कहा कि उसका मानना है कि सामने आई पूरी कहानी दोस्ती और उसके बाद अलग-अलग परिस्थितियों में विकसित हुए रिश्ते के अस्तित्व को उजागर करती है। शुरुआती अवधि के दौरान, याचिकाकर्ता दूसरे पक्ष से शादी करने की इच्छुक थी, जिस पर वह बाद में सहमत हो गई और 4 फरवरी 2021 को समझौता भी हो गया। आरोप है कि याचिकाकर्ता द्वारा ब्लैकमेल किए जाने के बाद धमकी या दबाव के तहत दूसरा पक्ष शादी के लिए राजी हो गया। दिलचस्प बात यह है कि महिला भी बाद में सहमत हो गई और 2021 में याचिकाकर्ता के साथ एक लिखित समझौता भी किया। यह दर्शाता है कि दोनों को एक-दूसरे के साथ व्यवहार करने और अपने रिश्ते को प्रबंधित करने में कठिन समय का सामना करना पड़ा, जो अंततः खराब हो गया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शिकायत और दलीलों पर विचार करने के बाद कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाना उचित नहीं होगा। न्यायमूर्ति आरके पटनायक ने देखा कि पक्ष शिक्षित हैं और परिणामों के बारे में काफी जागरूक थे। अभी भी खुद को एक ऐसे रिश्ते में शामिल कर रहे थे जो दूर से एकतरफा प्रतीत होता है, लेकिन ऐसा नहीं था।
पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने एक आदेश में कहा था कि अगर एक व्यक्ति लड़की को शादी का आश्वासन देकर शारीरिक संबंध बनाते हैं, जो किन्हीं कारणों से बाद में नहीं बन हो पाती है तो इसे इस दावे के साथ दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता कि वादा तोड़ा गया है। अदालत ने मामले के संबंध में कहा, एक खट्टे रिश्ते को हमेशा अविश्वास के प्रोडक्ट के रूप में ब्रांडेड नहीं किया जाना चाहिए और पुरुष साथी पर कभी भी दुष्कर्म का आरोप नहीं लगाना चाहिए।
कानून को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाना उचित नहीं होगा। हालांकि, जहां तक अन्य आरोपों का सवाल है, इसे पूछताछ और जांच के लिए खुला छोड़ दिया जाना चाहिए।
अस्तु अदालत ने इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत आरोप को खारिज कर दिया।