दिल्ली उच्च न्यायालय ने दो लोगों को अपने पड़ोस में रहने वाली एक महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के आरोप में एक महीने की अवधि के लिए गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब में सामुदायिक सेवा करने का निर्देश दिया। साथ ही अदालत ने दोनों पक्षों के बीच समझौते के बाद मामले में दर्ज प्राथमिकी को भी रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने पाया कि आरोपियों ने शिकायतकर्ता पड़ोसी पर हमला किया और उसकी पत्नी के खिलाफ ‘आपत्तिजनक टिप्पणियां’ कीं इसलिए समझौते होने के बाद भी उन्हें ‘छोड़ा’ नहीं जा सकता।
न्यायाधीश ने कहा कि आरोपियों को अपने कृत्यों का प्रायश्चित करना होगा और यह समझना होगा कि वे अदालत को हल्के में नहीं ले सकते।
अदालत ने दोनों आरोपियों को सशस्त्र बल युद्ध हताहत कल्याण कोष में 25-25 हजार रुपये का भुगतान करने और अपने इलाके में 20-20 पौधे लगाकर उनकी देखभाल करने का निर्देश दिया।
अदालत ने समझौते के बाद प्राथमिकी को रद्द करने के लिए आरोपी की याचिका पर विचार करते हुए यह आदेश पारित किया।
न्यायाधीश ने कहा, “इस अदालत को यह भी लगता है कि याचिकाकर्ताओं को कुछ सामुदायिक सेवा भी करनी चाहिए।”
अदालत ने 18 जुलाई को पारित आदेश में कहा, “ याचिकाकर्ताओं को एक अगस्त 2024 से 31 अगस्त 2024 तक एक महीने की अवधि के लिए गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब में सामुदायिक सेवा करने का निर्देश दिया जाता है।”
अदालत ने निर्देश दिया, “याचिकाकर्ता एक महीने की अवधि के लिए हर दिन पूर्वाह्न नौ बजे से गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब में उन्हें सौंपे गए कर्तव्यों का पालन करेंगे और एक महीने की अवधि पूरी होने के बाद गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब से प्राप्त प्रमाण पत्र को अदालत में दाखिल करेंगे।”
आरोपियों के खिलाफ 2014 में तत्कालीन भारतीय दंड संहिता के तहत चोट पहुंचाने, महिला की गरिमा को भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करने जैसे विभिन्न अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी।