दिल्ली हाईकोर्ट Delhi High Court ने गुरुवार को फिल्म इंडस्ट्री Film Industries में महिला आर्टिस्ट Female Artist के साथ होने वाले लिंग आधारित भेदभाव और यौन उत्पीड़न sexual harresment की जांच का आदेश देने से इनकार कर दिया। अदालत ने साफ कर दिया कि वह बिना शिकायत के फिशिंग इंक्वायरी Fishing Enquary (अतार्किक या घुमावदार जांच) का निर्देश नहीं दे सकती है। इसके साथ ही अदालत ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि पीड़ित पक्ष की ओर से शिकायत नहीं दर्ज कराए जाने की स्थिति में घुमावदार फिशिंग इंक्वायरी Fishing Enquary (अतार्किक जांच) का आदेश नहीं दे सकती है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अजीश कलाथी गोपी सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत रूप से पेश हुए। याचिकाकर्ता का कहना था कि सेक्सुअल हैरेसमेंट की समस्या पूरी फिल्म इंडस्ट्री में है। याचिका में राष्ट्रीय महिला आयोग (ncw) को एक विशेषज्ञ समिति गठित करके मानवाधिकार उल्लंघन की जांच करने और शोषण को रोकने के लिए कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 में विधायी संशोधनों की सिफारिश करने का निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी। याचिका अधिवक्ता अजीश कलाथी गोपी की ओर से दायर की गई थी।
न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह बिना किसी डेटा के अनुमान पर आधारित है। इसमें फिल्म इंडस्ट्री में यौन उत्पीड़न की कोई विशेष शिकायत नहीं दी गई है। अदालत ने वकील गोपी से कहा कि हम घूम-घूम कर जांच करने का निर्देश नहीं देंगे। आप जनहित याचिका दायर कर सकते हैं, लेकिन यह शिकायत पर आधारित होनी चाहिए।
उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा- याचिका में यौन उत्पीड़न की कोई शिकायत नहीं है। याचिका बिना किसी अनुभवजन्य डेटा के अनुमानों पर आधारित है। ऐसे में हम याचिका को स्वीकार करना उचित नहीं समझते हैं। याचिका बंद की जाती है। याचिका न्यायमूर्ति के हेमा समिति की रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में दायर की गई थी। रिपोर्ट मलयालम सिनेमा में महिलाओं की परिस्थितियों पर 19 अगस्त को जारी की गई थी। इसमें मलयालम फिल्म उद्योग में व्यापक यौन शोषण के आरोप सामने आए थे।
Leave a Reply