पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) के तहत, एक विधवा बहू के भरण-पोषण की जिम्मेदारी ससुर पर स्वतः लागू नहीं होती, जब तक कि उसके पास पारिवारिक सहस्वामित्व (coparcenary) संपत्ति से प्राप्त पर्याप्त आय न हो।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला फौजदारी पुनरीक्षण याचिका (Criminal Revision Petition) से संबंधित था, जिसमें शिकायतकर्ता ने पति की मृत्यु के बाद ससुराल पक्ष से भरण-पोषण की मांग की थी।
निचली अदालत (मैजिस्ट्रेट कोर्ट) ने आदेश दिया कि उसे पति, ससुराल पक्ष और अन्य रिश्तेदारों से भरण-पोषण प्रदान किया जाए। बाद में, सत्र न्यायालय (Sessions Court) ने इस आदेश में संशोधन करते हुए ससुर और सास को प्रतिमाह ₹5,000 भरण-पोषण देने का निर्देश दिया।
इस आदेश को ससुर और अन्य रिश्तेदारों ने पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि सत्र न्यायालय ने गलत तरीके से ससुर और सास पर भरण-पोषण की जिम्मेदारी डाली, जबकि ससुर एक पेंशनभोगी (pensioner) हैं और उनके पास कोई अन्य आय का स्रोत नहीं है।
हाईकोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति जीतेन्द्र कुमार की एकल पीठ ने कहा,
“हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 19 स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि ससुर पर बहू का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी तभी बनती है, जब उसके पास पारिवारिक सहस्वामित्व संपत्ति से आय हो।”
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील ने यह तर्क दिया कि
- ससुराल पक्ष के पास कोई पारिवारिक सहस्वामित्व संपत्ति नहीं है।
- केवल एक आवासीय घर (joint family house) है, जिसमें शिकायतकर्ता रहने के लिए स्वतंत्र है।
- ससुर एक पेंशनभोगी हैं और उनके पास कोई अन्य आर्थिक साधन नहीं है।
- सास की कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह अपनी विधवा बहू का भरण-पोषण करे।
हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के आदेश को असंवैधानिक मानते हुए कहा कि,
“निचली अदालत (ACJM) ने बिना कानून और तथ्यों की उचित व्याख्या किए, सभी प्रतिवादियों—पति, ससुर, सास और अन्य रिश्तेदारों—के खिलाफ भरण-पोषण आदेश पारित कर दिया। यह आदेश कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है। केवल पति को ही भरण-पोषण देने के लिए बाध्य किया जा सकता था, वह भी तब जब कानूनी आवश्यकताएं पूरी होतीं।”
ससुर की जिम्मेदारी केवल विशेष परिस्थितियों में ही लागू
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ पति और कुछ मामलों में ससुर को ही भरण-पोषण देने का उत्तरदायित्व हो सकता है, लेकिन ससुर की जिम्मेदारी भी पूर्णतः अनिवार्य (absolute) नहीं होती।
“हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 19 के तहत, ससुर पर भरण-पोषण की जिम्मेदारी थोपने से पहले कुछ कानूनी शर्तों को पूरा किया जाना आवश्यक है। लेकिन सत्र न्यायालय ने इस संबंध में उचित कानूनी और तथ्यात्मक विश्लेषण किए बिना आदेश पारित कर दिया।”
हाईकोर्ट का अंतिम आदेश
- सत्र न्यायालय का भरण-पोषण आदेश रद्द कर दिया गया।
- मामला निचली अदालत (ACJM) को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया गया, ताकि शिकायतकर्ता की भरण-पोषण की पात्रता को साक्ष्यों के आधार पर पुनः आंका जा सके।
- हालांकि, हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता के सुरक्षा और निवास के अधिकार को बरकरार रखा, जिससे वह संयुक्त परिवार के घर में रहना जारी रख सके।
वाद शीर्षक – कंपनी राम एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
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