डाबर को राहत, दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि को ‘च्यवनप्राश’ को लेकर भ्रामक विज्ञापन हटाने का निर्देश दिया
नई दिल्ली | विधि संवाददाता
दिल्ली हाईकोर्ट ने डाबर इंडिया लिमिटेड को अंतरिम राहत देते हुए गुरुवार को पतंजलि आयुर्वेद को निर्देश दिया कि वह अपने उन विज्ञापनों को वापस ले, जो डाबर के च्यवनप्राश को कथित रूप से नीचा दिखाने के उद्देश्य से प्रसारित किए जा रहे हैं। न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा की एकल पीठ ने यह आदेश डाबर द्वारा दाखिल एक वाद के तहत पारित किया।
अदालत ने डाबर की अंतरिम अर्जी को स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई की तिथि 14 जुलाई निर्धारित की है।
डाबर का पक्ष
डाबर ने अदालत में दाखिल की गई याचिका में आरोप लगाया कि पतंजलि ने दिसंबर 2024 में समन जारी होने के बावजूद एक सप्ताह में छह हजार से अधिक बार ऐसे विज्ञापन प्रसारित किए जो डाबर के उत्पाद की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाले थे।
डाबर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने तर्क दिया कि पतंजलि ने अपने च्यवनप्राश को 51 से अधिक जड़ी-बूटियों से बना बताया, जबकि असल में उसमें केवल 47 जड़ी-बूटियां हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उत्पाद में पारा (mercury) मौजूद है, जिससे बच्चों की स्वास्थ्य सुरक्षा पर सवाल खड़े होते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि पतंजलि ने अपने विज्ञापनों में डाबर के 40 जड़ी-बूटियों वाले च्यवनप्राश को “साधारण” कहकर दर्शाया, जिससे यह संकेत मिलता है कि पतंजलि का उत्पाद ही असली आयुर्वेदिक परंपरा का पालन करता है और शेष उत्पादों की गुणवत्ता कमतर है।
पतंजलि का बचाव
पतंजलि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयंती मेहता ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनका उत्पाद सभी नियामकीय मानकों का पालन करता है और उपयोग के लिए पूरी तरह सुरक्षित है।
हाईकोर्ट का निर्देश
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, तब तक पतंजलि ऐसे किसी भी विज्ञापन का प्रकाशन या प्रसारण नहीं करेगा, जो डाबर के उत्पाद की छवि को नुकसान पहुंचाते हों।
यह आदेश भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक विज्ञापनों और उपभोक्ता संरक्षण के संदर्भ में एक अहम फैसला माना जा रहा है, जो ब्रांड्स के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और निष्पक्षता को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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