PMO के फर्जी पत्र मामले में आरोपी को मिली जमानत: Rouse Avenue कोर्ट ने नहीं समझा न्यायिक हिरासत का औचित्य
— विधि संवाददाता, दिल्ली
दिल्ली की Rouse Avenue कोर्ट ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के नाम पर फर्जी पत्र लिखने के मामले में आरोपी एस. वी. श्रीनिवास राव को जमानत दे दी है। यह पत्र कथित रूप से तीन सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ जांच कराने के उद्देश्य से भेजा गया था और इसमें PM के विशेष अधिकारी (Special Officer to the PM) के हस्ताक्षर का उल्लेख किया गया था—जबकि जांच में सामने आया कि PMO में ऐसा कोई पद अस्तित्व में ही नहीं है।
📌 मामला क्या है?
- यह मामला 29 मई 2019 को PMO के सहायक निदेशक पी.के. इस्सर की शिकायत पर CBI द्वारा दर्ज किया गया था।
- शिकायत में कहा गया कि 11 अगस्त 2016 को आरोपी द्वारा भेजे गए एक प्रतिनिधित्व को जालसाजी से तैयार पत्र के ज़रिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को भेजने का प्रयास किया गया।
- यह पत्र PMO के “Special Officer” समीर कुमार के नाम से भेजा गया था, जबकि जांच में सामने आया कि वास्तविक पत्र समीर कुमार, सेक्शन ऑफिसर के हस्ताक्षर से 18 अगस्त 2016 को जारी हुआ था, जिसमें केवल “उचित कार्रवाई” के लिए निर्देश दिए गए थे।
⚖️ कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य महानगर दंडाधिकारी (Chief Judicial Magistrate) दीपक कुमार ने 8 जुलाई 2025 को यह आदेश पारित करते हुए कहा:
“आरोपी को जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया और चार्जशीट भी बिना गिरफ्तारी दाखिल की गई। वह अदालत के समन पर पहली बार में ही उपस्थित हो गया। ऐसे में उसे न्यायिक हिरासत में भेजने का कोई औचित्य नहीं बनता।”
इस आधार पर आरोपी को ₹50,000 के निजी मुचलके और समान राशि की एक जमानत के साथ जमानत दे दी गई।
⚖️ अभियोजन पक्ष की दलील
CBI ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं 466 (दस्तावेजों की जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज का प्रयोग), 474 (जाली दस्तावेज रखने) के तहत आरोप लगाए थे।
CBI की जांच में यह सामने आया कि:
- आरोपी द्वारा PMO को भेजे गए RTI आवेदन के साथ वही फर्जी पत्र संलग्न था।
- उस पत्र में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया था कि प्रतिनिधित्व CJI को “प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई हेतु” भेजा गया, जबकि वास्तविक पत्र में ऐसा कोई निर्देश नहीं था।
⚖️ बचाव पक्ष की दलील
अधिवक्ता अमृता शर्मा, जो आरोपी की ओर से पेश हुईं, ने कहा कि:
- आरोपी ने पूरी जांच में सहयोग किया है और उसे कभी गिरफ्तार नहीं किया गया।
- इसलिए, उसे न्यायिक संरक्षण मिलना चाहिए।
📌 निष्कर्ष
इस मामले में कोर्ट ने साफ कहा कि जब आरोपी जांच में सहयोग करता रहा है और पहले ही समन पर हाजिर हो गया, तो उसे हिरासत में भेजने का औचित्य नहीं बनता।
हालांकि कोर्ट ने चार्जशीट के आधार पर आरोपी के खिलाफ अपराधों पर संज्ञान ले लिया है, लेकिन सुनवाई तक आरोपी को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है।
मामला उच्च न्यायपालिका से जुड़ा होने और फर्जी दस्तावेज़ों के इस्तेमाल से संबंधित होने के कारण गंभीर बना हुआ है। अगली सुनवाई में आरोप तय होने की प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है।
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