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कुछ निर्णयों से ऐसा लगता है कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप बड़ा है- वेंकैया नायडू

जीवंत लोकतंत्र की कुंजी” विषय पर अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 80वें सम्मेलन को संबोधित किया।

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने बुधवार को पटाखों पर अदालत के फैसले और जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका को भूमिका देने से इनकार करने का उदाहरण देते हुए कहा कि अदालतों के कुछ फैसलों से लगता है कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप बढ़ा है।

अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 80वें सम्मेलन को संबोधित किया-

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू


उन्होंने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका संविधान के तहत परिभाषित अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत काम करने के लिए बाध्य हैं। दरअसल, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण समन्वय – जीवंत लोकतंत्र की कुंजी’ विषय पर अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 80वें सम्मेलन को संबोधित किया। नायडू ने कहा कि तीनों अंग एक-दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप किए बगैर काम करते हैं और सौहार्द बना रहता है।

उन्होंने आगे कहा कि इसमें आपसी सम्म्मान, जवाबदेही और धैर्य की जरूरत होती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब सीमाएं लांघी गईं। कई न्यायिक फैसले किए गए जिसमें हस्तक्षेप का मामला लगता है।

कुछ मुद्दों को सरकार के अन्य अंगों पर छोड़ दिया जाना चाहिए-


उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस तरह की बहस है कि क्या कुछ मुद्दों को सरकार के अन्य अंगों पर वैधानिक रूप से छोड़ दिया जाना चाहिए। जिसपर उधाहरण देते हुए नायडू ने कहा कि दिवाली पर पटाखों को लेकर फैसले देने वाली न्यायपालिका कलीजियम के माध्यम से जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका को भूमिका देने से इनकार कर देती है। कुछ न्यायिक फैसलों से प्रतीत होता है कि हस्तक्षेप बढ़ा है। संविधान की तरफ से तय रेखाओं का उल्लंघन हुआ जिससे बचा जा सकता था। वही कई बार विधायिका ने भी रेखा लांघी है।

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