9 जुडिशियल ऑफिसर्स के खिलाफ हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद 1977 में स्थापित एक संपत्ति मुकदमे का निस्तारण करने में विफल रहने पर कार्यवाही

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साथ ही साथ न्यायालय ने कहा कि जब न्यायिक अधिकारी हाईकोर्ट द्वारा निर्देशित समय सीमा के भीतर कार्यवाही समाप्त करने में असमर्थ होता है, तो उसे समय विस्तार की मांग करनी चाहिए। न्यायालय ने माना कि इस मामले में किसी भी न्यायिक अधिकारी ने ऐसा नहीं किया है।

गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा 9 जुडिशियल अधिकारियों Judicial Officers के खिलाफ हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद 1977 में स्थापित एक संपत्ति मुकदमे का निस्तारण करने में विफल रहने के आरोप में उन पर अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की मांग की है।

हाईकोर्ट ने इस संबंध में शो कॉज नोटिस Show Cause Notice जारी किया है।

गुजरात हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की पीठ ने देखा कि 1970 के दशक में पार्टियों के बीच संपत्ति विवाद पैदा हुआ, जिसके बाद 1977 में एक मुकदमा दायर किया गया। 1985 में गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की गई, जिसमें हाईकोर्ट ने 2004 में दिए आदेश में मामले को ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया था, और 31 दिसंबर, 2005 तक कार्यवाही समाप्त करने का निर्देश दिया।

गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों की घोर उपेक्षा पर हैरानी व्यक्त करते हुए, खंडपीठ ने 16.12.2022 के आदेश में उन न्यायिक अधिकारियों को निर्देशित किया था, जिन्होंने दिसंबर, 2004 से आदेश की तारीख तक प्रिंसिपल सीनियर सिविल जज, आणंद के न्यायालय की अध्यक्षता की थी। उनसे यह स्पष्ट करने के लिए कहा गया कि कार्यवाही अभी तक समाप्त क्यों नहीं हुई।

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रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए, जिसमें संबंधित न्यायिक अधिकारियों के जवाब शामिल थे, न्यायालय ने कहा कि दिसंबर, 2004 से आज तक, 16 न्यायिक अधिकारियों ने उक्त न्यायालय का नेतृत्व किया था, जिनमें से 10 न्यायिक अधिकारी अब तक सेवा में हैं, जबकि 6 न्यायिक अधिकारी अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उनमें से 2 की मृत्यु हो गई है। इसके अलावा, अदालत ने कहा कि 27.12.2016 से आज तक, ट्रायल कोर्ट के समक्ष मामला बिना कोई कारण बताए बार-बार स्थगित किया गया।

बेंच ने पाया कि ट्रायल कोर्ट Trail Court में मुकदमा श्री सुनील चौधरी के समक्ष लंबित था, जो अब प्रधान सिविल जज के रूप में सेवारत हैं। हालांकि, चौधरी ने अपने जवाब में कहा है कि उन्हें हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देश के बारे में पता नहीं था।

हाईकोर्ट ने प्रतिक्रिया में कहा-

“इन अधिकारियों, यानि सेवारत अधिकारियों द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को स्वीकार नहीं किया जा सकता है और इसे न केवल निरुत्साहित करने की आवश्यकता है, बल्कि इसे रोकने की भी आवश्यकता है।”

कोर्ट ने फैसला में कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि क्या किसी विशेष मामले में हाईकोर्ट ने कोई निर्देश या आदेश जारी किया है, प्रत्येक न्यायिक अधिकारी को मामले के रिकॉर्ड की जांच करनी चाहिए।

हाई कोर्ट ने कहा-

“इसलिए, हम उक्त न्यायिक अधिकारियों को जवाब में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं, कि 25.11.2004 को इस न्यायालय द्वारा जारी निर्देश का पालन नहीं करने के लिए उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।”

साथ ही साथ न्यायालय ने कहा कि जब न्यायिक अधिकारी हाईकोर्ट द्वारा निर्देशित समय सीमा के भीतर कार्यवाही समाप्त करने में असमर्थ होता है, तो उसे समय विस्तार की मांग करनी चाहिए। न्यायालय ने माना कि इस मामले में किसी भी न्यायिक अधिकारी ने ऐसा नहीं किया है।

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हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को एक सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया है, जिसमें कहा गया है कि उन सभी मामलों में जहां हाईकोर्ट द्वारा एक निर्दिष्ट समय में मामले को निपटाने का निर्देश जारी किया गया है, निर्देश सुनवाई की तारीख तक हर दिन रिकॉर्ड में परिलक्षित होता रहेगा, जब तक कि मामले का निपटारा नहीं हो जाता है या जब तक कि हाईकोर्ट के निर्देश को संशोधित या परिवर्तित नहीं किया जाता है।

केस टाइटल – पटेल अंबालाल कालिदास बनाम पटेल मोतीभाई कालिदास

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