इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डकैती के आरोपी को शर्तों के साथ दी जमानत

इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश: शस्त्र लाइसेंस आवेदनों का समय सीमा में निस्तारण अनिवार्य

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रामनगर, वाराणसी में डकैती के आरोप में 7 अगस्त 2024 से जेल में बंद योगेश पाठक @ सोनू पाठक को शर्तों के साथ जमानत प्रदान की है।

न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की एकलपीठ ने यह आदेश योगेश पाठक @ सोनू पाठक द्वारा दायर आपराधिक जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने जमानत याचिका में भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 395 और 412 के तहत दर्ज मामले में मुकदमे के दौरान जमानत पर रिहा करने की प्रार्थना की थी। यह मामला थाना रामनगर, जिला वाराणसी में दर्ज किया गया था।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि आवेदक निर्दोष है और पुलिस द्वारा झूठा फंसाया गया है

उन्होंने आगे कहा कि प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने में 20 दिन की देरी हुई और इस संबंध में कोई उचित स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया गया

याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत दलीलें

  • घटनास्थल से आवेदक की कोई गिरफ्तारी नहीं हुई, बल्कि सह-आरोपी के इकबालिया बयान के आधार पर उसे गिरफ्तार किया गया
  • पुलिस कोई ठोस सबूत प्रस्तुत करने में असफल रही, जिससे आवेदक का अपराध से सीधा संबंध साबित हो।
  • समान रूप से आरोपी सुर्य प्रकाश पांडेय को पहले ही 9 सितंबर 2024 को जमानत मिल चुकी है। इसलिए, आवेदक को भी समानता के आधार पर जमानत दी जानी चाहिए
  • अभियोजन की कहानी अविश्वसनीय है, और आवेदक के विरुद्ध पूर्व में आपराधिक इतिहास होने के बावजूद, वह 7 अगस्त 2024 से जेल में बंद है
  • आवेदक ने आश्वासन दिया कि यदि उसे जमानत दी जाती है, तो वह इसका दुरुपयोग नहीं करेगा और न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग करेगा
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राज्य सरकार की ओर से आपत्ति

राज्य की ओर से उपस्थित अपर शासकीय अधिवक्ता (AGA) ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि आवेदक सह-आरोपी के इकबालिया बयान के आधार पर गिरफ्तार किया गया था और उसके विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं। इसलिए, उसे जमानत देने योग्य नहीं माना जाना चाहिए

न्यायालय का अवलोकन

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन करने के बाद निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया:

  1. आवेदक 7 अगस्त 2024 से जेल में बंद है
  2. घटनास्थल पर आवेदक की तत्काल गिरफ्तारी नहीं हुई
  3. FIR दर्ज करने में 20 दिनों की देरी हुई, जिसका कोई पर्याप्त स्पष्टीकरण नहीं दिया गया
  4. याचिकाकर्ता के वकील के अनुसार, उसके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य मौजूद नहीं है
  5. याचिकाकर्ता ने आश्वासन दिया है कि वह जमानत का दुरुपयोग नहीं करेगा और ट्रायल में सहयोग करेगा

कोर्ट ने कहा कि:
“आरोपों की प्रकृति, दोषसिद्धि की स्थिति में सजा की गंभीरता, समर्थन साक्ष्यों की प्रकृति, अदालत की प्रारंभिक संतुष्टि, सुधारात्मक न्याय सिद्धांत और संविधान के अनुच्छेद 21 के व्यापक जनादेश को ध्यान में रखते हुए, बिना मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी किए, मैं इसे जमानत के लिए उपयुक्त मामला मानता हूँ।”

कोर्ट का आदेश

कोर्ट ने निर्देश दिया कि:
आवेदक- योगेश पाठक @ सोनू पाठक को जमानत पर रिहा किया जाए
इसके लिए उसे एक व्यक्तिगत मुचलका और समान राशि के दो जमानतदार प्रस्तुत करने होंगे
न्यायालय द्वारा निर्धारित निम्नलिखित शर्तों का पालन करना अनिवार्य होगा:

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1️⃣ आवेदक अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा, न ही गवाहों को धमकाएगा या उन पर दबाव डालेगा
2️⃣ आवेदक यह शपथ पत्र देगा कि वह गवाहों की उपस्थिति पर अदालत में सुनवाई की तिथि को स्थगित करने का अनुरोध नहीं करेगा
3️⃣ ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रमुख तिथियों – आरोप तय करने, गवाहों की जिरह और धारा 313 CrPC के तहत बयान दर्ज कराने के दौरान आवेदक को स्वयं उपस्थित रहना होगा
4️⃣ यदि आवेदक जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है और उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए धारा 82 CrPC के तहत उद्घोषणा जारी होती है, लेकिन वह पेश नहीं होता, तो उसके खिलाफ IPC की धारा 174-A के तहत कानूनी कार्यवाही की जाएगी

निष्कर्ष

इस निर्णय के माध्यम से, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों की मौलिक जांच और आरोपी की जमानत के लिए उचित संतुलन आवश्यक है। चूंकि इस मामले में आवेदक के खिलाफ प्रत्यक्ष साक्ष्य अपर्याप्त पाए गए, उसे सख्त शर्तों के साथ जमानत दी गई

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