CAA-NRC को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है, देश को जानना जरूरी कौन है भारत का नागरिक : आरएसएस चीफ

CAA-NRC को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है, देश को जानना जरूरी कौन है भारत का नागरिक : आरएसएस चीफ

सरसंघचालक डॉ भागवत ने आज गुवाहाटी के पांजाबारी स्थित श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में ‘सिटिजनशिप डिबेट ओवर एनआरसी एंड सीएए – असम और इतिहास की राजनीति’ नामक एक पुस्तक का विमोचन किया-

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गुवाहाटी : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत ने बुधवार को कहा कि देश में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। इसका मकसद विभाजन के समय किए गए वादे को पूरा नहीं करने के चलते प्रताड़ित हुए लोगों को शरण देना है।  

सरसंघचालक डॉ भागवत ने आज गुवाहाटी के पांजाबारी स्थित श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में ‘सिटिजनशिप डिबेट ओवर एनआरसी एंड सीएए : असम और इतिहास की राजनीति’ नामक एक पुस्तक का विमोचन किया।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आजादी से पहले देश के कई इलाकों में मुसलमानों की आबादी बढ़ाने की कोशिश की गई ताकि उनके लिए अलग देश हासिल किया जा सके। इसी के चलते पंजाब, बंगाल का एक हिस्सा और सिंध पाकिस्तान में चला गया।

उसके बाद यह भी प्रयास किए गए कि कैसे अन्य भारतीय क्षेत्रों को PAKISTAN पाकिस्तान में मिलाया जाए। इसके चलते देश में घुसपैठ हुई। कुछ स्थानों में मुस्लिम आबादी बढ़ाने के लिए मदद भी पहुंचाई जाती रही।  

उन्होंने कहा कि विभाजन के समय दोनों देशों ने एक दूसरे के यहां अल्पसंख्यकों का ध्यान रखने का वादा किया था लेकिन पाकिस्तान ने उसका पालन नहीं किया। वहां से हिन्दू प्रताड़ित होकर यहां आने लगे। अब उन्हें संरक्षण और नागरिकता देना हमारा दायित्व है।  

दोनों विषयों को रखते हुए उन्होंने कहा कि कौन भारत का नागरिक है और कौन नहीं है, यह जानना बेहद जरूरी है। हम भविष्य के लिए इस समस्या को नहीं छोड़ सकते। कुछ लोग अपनी राजनीतिक दुकान चलाने के लिए इसका विरोध कर रहे हैं।

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वह लोग भ्रम फैला रहे हैं कि ऐसा वर्चस्व, कट्टरता और राजनीति के चलते किया जा रहा है। इस भ्रम से बाहर निकलने के लिए हमें विषय वस्तु को राजनीति से हटकर समझना होगा और इसके संबंध में अध्ययन करना होगा। उक्त पुस्तक इसी को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है।  

डॉ. भागवत ने कहा कि भारत कर्म भूमि है, ना कि भोग भूमि। भारत का नागरिक होने के लिए जरूरी है कि हम संविधान में 51ए के तहत लिखे गए कर्तव्यों का पालन करें। बहुत से लोग केवल जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं जबकि उनका इन कर्तव्यों से कोई लेना-देना नहीं है।  

भारत को परंपरागत तौर पर लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष बताते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संविधान को संविधान निर्माताओं ने लिखा और संविधान निर्माताओं में धर्मनिरपेक्षता का भाव देश की परंपरागत संस्कृति से उपजा है।  

भारत की सांस्कृतिक विविधता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सदियों से हम अलग-अलग रीति, भाषा परंपरा के साथ मिलकर एक देश के नागरिक के तौर पर रहते आए हैं। यह भाव दुनिया में अन्य जगह नहीं मिलता। वह एक भाषा, एक धर्म और एक विचार की बात करते हैं।  

इस अवसर पर असम के मुख्यमंत्री डॉ हिमंत बिस्व सरमा ने सीएए-एनआरसी को लेकर असम और देश के अन्य भागों में हुए प्रदर्शनों के बीच अंतर समझाने का प्रयास किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि असम में हो रहे प्रदर्शन असमिया बनाम अन्य की बात करते हैं जबकि देश के अन्य भागों में हो रहे प्रदर्शन मुसलमानों को सीएए का हिस्सा बनाने को लेकर हो रहे हैं।

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देश के अन्य भागों में हो रहे प्रदर्शन मुद्दे का धार्मिक ध्रुवीकरण करने का प्रयास है। इन्हीं प्रयासों को नकारते हुए असम की जनता ने भारत की सांस्कृतिक पहचान को अधिक महत्व दिया और भाजपा को दोबारा सत्ता के लिए चुना। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में मुस्लिम प्रताड़ित नहीं हैं। ऐसे में सीएए में उनके लिए प्रावधान चाहना सही नहीं है।  

मुख्यमंत्री ने विशेष तौर पर उल्लेख करते हुए कहा कि देश के इंटेलेक्चुअल्स स्पेस में वामपंथी और लिबरल सोच वालों का वर्चस्व रहा है। इन लोगों ने असम का अलग इतिहास बनाने की कोशिश की है। इन लोगों का मीडिया में भी वर्चस्व है। यह लोग किसी भी वैकल्पिक आवाज को हमेशा दबाने की कोशिश करते रहते हैं।  

कार्यक्रम में असम के मुख्यमंत्री डॉ हिमंत बिस्व सरमा के अलावा गौहाटी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीजे हैंडिक समेत कई प्रतिष्ठित हस्तियां उपस्थिति रहीं। पुस्तक के लेखक गौहाटी विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो. ननी गोपाल महंत हैं।(हि.स.)।

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