नई दिल्ली, कस्टम्स, एक्साइज और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (CESTAT): केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर, ऑडिट-II, नई दिल्ली के आयुक्त द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली सेवा कर अपील पर सुनवाई करते हुए, जिसमें विभाग ने अपीलकर्ता पर माल भाड़े (समुद्री/वायुमार्ग) से जुड़े अतिरिक्त शुल्क (मार्क अप) पर सेवा कर की वसूली के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया था, न्यायाधिकरण की द्विसदस्यीय पीठ, बीनू तमटा (न्यायिक सदस्य) और राजीव टंडन (तकनीकी सदस्य), ने अपील को स्वीकार करते हुए आयुक्त के आदेश को निरस्त कर दिया। न्यायाधिकरण ने माना कि जब अपीलकर्ता शिपिंग लाइन/एयरलाइन से स्पेस खरीदने और उसे आयातकों/निर्यातकों को बेचने का कार्य प्रिंसिपल-टू-प्रिंसिपल आधार पर कर रहा है, तो यह सेवा कर के अंतर्गत नहीं आएगा।
विवाद की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता कंपनी को सेवा कर के कथित रूप से अप्रमाणित भुगतान न किए जाने को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, जिसमें माल भाड़े (समुद्री/वायुमार्ग) से जुड़े अतिरिक्त शुल्क (मार्क अप) पर सेवा कर की मांग की गई थी। विवादित अवधि वित्तीय वर्ष 2010-11 से 2014-15 और 01-04-2015 से 30-06-2017 तक की थी। विभाग ने आदेश जारी कर ₹3,67,38,471/- की सेवा कर मांग को ब्याज और समान जुर्माने के साथ पुष्टि की थी।
विभाग ने दावा किया कि अपीलकर्ता कंपनी का प्रमुख राजस्व स्रोत समुद्री और वायुमार्ग भाड़े की आय, हॉलिंग कमीशन, परामर्श शुल्क और कस्टम क्लीयरेंस शुल्क से संबंधित था। विभाग ने जांच के दौरान पाया कि अपीलकर्ता ने ग्राहकों से माल भाड़े के रूप में प्राप्त शुल्क और शिपिंग लाइन/एयरलाइन को भुगतान किए गए शुल्क के बीच के अंतर (मार्क अप) पर कोई सेवा कर अदा नहीं किया था। विभाग का तर्क था कि यह “मार्क अप” एक सेवा का प्रतिफल है और इस पर सेवा कर देय है, क्योंकि यह माल परिवहन सेवा की श्रेणी में नहीं आता।
न्यायाधिकरण का निर्णय
अपीलीय न्यायाधिकरण ने Marinetrans India (P) Ltd. v. CST मामले में दिए गए निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि किसी जहाज में कार्गो स्पेस की खरीद-बिक्री सेवा प्रदान करने की श्रेणी में नहीं आती और इस तरह की लेन-देन से प्राप्त लाभ या आय सेवा कर के दायरे में नहीं आती।
इसके अलावा, न्यायाधिकरण ने Bhatia Shipping (P) Ltd. v. CST और Satkar Logistics v. CST मामलों का भी हवाला देते हुए कहा कि अपीलकर्ता केवल स्पेस ट्रेडिंग कर रहा था और कोई सेवा नहीं दे रहा था।
इस मामले में न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया कि जब अपीलकर्ता शिपिंग लाइन/एयरलाइन से स्पेस खरीदकर उसे आयातकों/निर्यातकों को स्वतंत्र रूप से बेचता है और किसी एजेंट या बिचौलिए के रूप में कार्य नहीं करता है, तो इसे सेवा कर के तहत करयोग्य गतिविधि नहीं माना जा सकता। अपीलकर्ता के लेन-देन स्वतंत्र रूप से संपन्न होते हैं और इसका प्रत्यक्ष संबंध शिपिंग लाइन/एयरलाइन के व्यापार को बढ़ावा देने से नहीं है।
अतः, न्यायाधिकरण ने सेवा कर की मांग को खारिज करते हुए अपीलकर्ता के पक्ष में निर्णय सुनाया और आयुक्त के आदेश को निरस्त कर दिया।
वाद शीर्षक – सीगल मैरीटाइम एजेंसीज़ प्रा.लि. बनाम केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर आयुक्त, नई दिल्ली
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