छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 3244 दिन की देरी से दायर द्वितीय अपील को ठुकराया, कहा—वजह अस्पष्ट और अविश्वसनीय

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 3244 दिन की देरी से दायर द्वितीय अपील को ठुकराया, कहा—वजह अस्पष्ट और अविश्वसनीय

धारा 5, परिसीमा अधिनियम के तहत विलंब माफी | 11 वर्षों की देरी | द्वितीय अपील की अस्वीकृति

रायपुर, अप्रैल 2025: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बद्री प्रसाद बनाम रामदास गोंड (एलआरएस के माध्यम से) एवं अन्य वाद में द्वितीय अपील और उसके साथ दायर विलंब माफी आवेदन (Limitation Act की धारा 5 के अंतर्गत) को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने 3244 दिनों (लगभग 11 वर्षों) की देरी को “अत्यधिक और अकारण” करार देते हुए स्पष्ट किया कि प्रस्तुत स्पष्टीकरण “संतोषजनक या विश्वसनीय नहीं” है।

❖ मामला संक्षेप में:

विवाद एक दीवानी वाद से संबंधित है, जिसमें अपीलकर्ता वादी पक्ष में था। सिविल जज द्वारा वाद खारिज किए जाने के बाद, वादकारियों ने प्राथमिक अपील दायर की थी, जो अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा अस्वीकार कर दी गई। इसके 11 वर्ष बाद, अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में द्वितीय अपील दाखिल की, साथ ही 3244 दिनों की देरी को माफ़ करने के लिए एक आवेदन भी प्रस्तुत किया।

❖ अपीलकर्ता की दलीलें:

अपीलकर्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि देरी गरीबी और कानूनी प्रक्रिया की अज्ञानता के कारण हुई। उन्होंने कहा कि यद्यपि देरी लंबी है, किंतु यह जानबूझकर नहीं बल्कि ईमानदार कारणों से हुई है। सुप्रीम कोर्ट के उदारतावादी दृष्टिकोण वाले फैसलों का हवाला देते हुए देरी को माफ करने की अपील की गई।

❖ प्रतिवादी की आपत्ति:

राज्य की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने विरोध किया कि 11 वर्षों से अधिक की देरी स्थापित अधिकारों को अस्थिर कर सकती है और न्यायालय के आदेशों की अंतिमता को प्रभावित करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि अपीलकर्ता द्वारा दिए गए कारण अपर्याप्त और विशेषरहित हैं।

ALSO READ -  प्रोटीन की कमी के प्रमुख लक्षण : प्रोटीन की कमी दूर करने के लिए खाएं इन चीजों को, होगा कई बीमारियों से बचाव-

❖ न्यायालय का अवलोकन:

माननीय न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी की एकल पीठ ने कहा कि यद्यपि देरी को माफ करने के लिए उदार दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है, यह विवेक न्यायिक और संतुलित होना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि यदि वास्तव में अपीलकर्ता आर्थिक रूप से अक्षम था, तो उसे निर्धनता प्रमाण पत्र के साथ इंडिजेंट पर्सन के रूप में अपील दायर करने का प्रयास करना चाहिए था। परंतु, ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया।

अदालत ने स्पष्ट किया कि अवधि की विशालता के साथ-साथ अपीलकर्ता का आचरण ईमानदार प्रतीत नहीं होता, और इसलिए अदालत अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग उसके पक्ष में नहीं कर सकती।

❖ फैसला:

अदालत ने कहा:

“स्पष्टीकरण अस्पष्ट, असंगत और अविश्वसनीय है। ऐसे में देरी को माफ करना न केवल कानून की भावना के विरुद्ध होगा, बल्कि प्रतिवादी के अधिकारों का उल्लंघन भी करेगा।”

इस प्रकार, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विलंब माफी का आवेदन और द्वितीय अपील दोनों को अस्वीकार कर दिया।

 

मामले का नाम: बद्री प्रसाद बनाम रामदास गोंड (एलआरएस के माध्यम से) एवं अन्य

 

Translate »