दिल्ली कोर्ट: संपत्ति विवाद के कारण दर्ज POCSO मामले में 4 आरोपियों को बरी किया
नई दिल्ली: दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस (POCSO) एक्ट के तहत दर्ज एक मामले में चार आरोपियों को बरी कर दिया। यह मामला संपत्ति विवाद के कारण उनकी भतीजी द्वारा दर्ज कराया गया था, लेकिन बाद में पीड़िता अपने आरोपों से पलट गई।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मुनीश गर्ग ने चारों आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि वे चार साल तक इस झूठे मुकदमे में फंसे रहे। यह एफआईआर जून 2021 में पीड़िता की मां के बयान पर दर्ज की गई थी।
पीड़िता ने खुद किया आरोपों का खंडन
अदालत ने पाया कि एफआईआर दर्ज होने के सिर्फ तीन दिन बाद ही जब पीड़िता का धारा 164 CrPC के तहत बयान दर्ज किया गया, तो उसने आरोपियों के खिलाफ किसी भी प्रकार के यौन शोषण के आरोपों से इनकार कर दिया।
मामले में साजिश और कानून के दुरुपयोग का आरोप
आरोपियों की ओर से पेश एडवोकेट रवि ड्राल ने दलील दी कि यह मामला व्यक्तिगत दुश्मनी के तहत कानून के दुरुपयोग का उदाहरण है। उन्होंने तर्क दिया कि POCSO एक्ट जैसी सख्त धाराओं का उपयोग संपत्ति विवाद और अन्य व्यक्तिगत मामलों को सुलझाने के लिए किया गया।
सबूतों की कमी और आरोपों की निराधारता
- मोबाइल फोन की फॉरेंसिक जांच (FSL रिपोर्ट):
आरोपी के फोन को 2021 में FSL जांच के लिए भेजा गया था ताकि यह पुष्टि हो सके कि कोई अश्लील वीडियो बनाया गया था या नहीं। कई महीनों की देरी के बाद आई रिपोर्ट में कोई भी आपत्तिजनक वीडियो नहीं मिला। - बंदूक का झूठा आरोप:
एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि आरोपी के पास बंदूक थी, लेकिन जांच में यह दावा सिर्फ एक मनगढ़ंत कहानी निकला, जिसे आरोपियों पर दबाव बनाने के लिए गढ़ा गया था।
न्यायालय की टिप्पणी और फैसला
- गवाहों की गवाही संदिग्ध:
कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता (मां) स्वयं उस कथित घटना की गवाह नहीं थी, जो उनकी बेटी के साथ हुई बताई गई थी। उन्होंने केवल यह कहा कि 13 जून 2021 को आरोपियों के साथ तीखी बहस हुई थी, लेकिन सिर्फ बहस होना किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता। - शिकायतकर्ता के बयान में विरोधाभास:
शिकायतकर्ता ने एफआईआर में दर्ज बयान से खुद ही पलटते हुए कहा कि एक NGO के अधिकारियों ने उनकी मां का बयान दर्ज कर उसे लिखित रूप दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सास लिख नहीं सकती थीं, इसलिए NGO के लोगों ने ही हस्ताक्षर कराए थे। - अभियोजन पक्ष सबूत पेश करने में नाकाम:
अदालत ने कहा कि फौजदारी कानून का मूल सिद्धांत यह है कि अभियोजन पक्ष को अपराध को संदेह से परे साबित करना होता है। लेकिन, इस मामले में अभियोजन पक्ष यह साबित करने में पूरी तरह विफल रहा।
अदालत का निष्कर्ष
अदालत ने सभी चार आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मुनीश गर्ग ने कहा कि इस मामले में कोई कानूनी आधार नहीं था, और यह मामला संपत्ति विवाद को लेकर दर्ज किया गया था।
झूठी एफआईआर दर्ज करने पर सख्त कार्रवाई की मांग
एडवोकेट रवि ड्राल ने अदालत से अनुरोध किया कि पीड़िता की मां के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज करने के लिए सख्त कार्रवाई की जाए, क्योंकि इस झूठे मामले के कारण निर्दोष नागरिकों को मानसिक, शारीरिक और सामाजिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि POCSO जैसे सख्त कानूनों का दुरुपयोग संपत्ति विवाद या व्यक्तिगत दुश्मनी में नहीं किया जाना चाहिए।
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