ईसाई धर्म में परिवर्तन के बावजूद जाति प्रमाण पत्र का न रद्द होना, एससी/एसटी कानून की सुरक्षा नहीं दिला सकता — आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Andhra Pradesh High Court

 

⚖️ “ईसाई धर्म में परिवर्तन के बावजूद जाति प्रमाण पत्र का न रद्द होना, एससी/एसटी कानून की सुरक्षा नहीं दिला सकता” — आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 2015 के तहत दर्ज प्राथमिकी और आरोप पत्र को रद्द करते हुए कहा कि जो व्यक्ति स्वेच्छा से ईसाई धर्म अपना चुका है और एक दशक से पादरी के रूप में सेवा दे रहा है, वह इस कानून के अंतर्गत सुरक्षा का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि यह अधिनियम केवल उन अनुसूचित जातियों पर लागू होता है जो हिंदू धर्म का पालन करते हैं।


📝 मामले की पृष्ठभूमि:

यह याचिका अक्कला रामी रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में दायर की गई थी, जिसमें शिकायतकर्ता (प्रतिकर्ता संख्या 2) ने याचिकाकर्ता के विरुद्ध SC/ST एक्ट की धाराओं — 3(1)(r), 3(1)(s), 3(2)(va) — तथा भारतीय दंड संहिता की धाराओं — 341, 506, 323 रीड विथ धारा 34 — के तहत आरोप लगाया था।

प्रतिकर्ता ने आरोप लगाया कि वह पिट्टलावनिपालेम गांव में पादरी हैं और उन्हें जातिसूचक गालियों के साथ मारपीट और जान से मारने की धमकी दी गई। पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर मामले की जांच कर चार्जशीट दाखिल की।


🙎‍♂️ याचिकाकर्ता की दलीलें:

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि शिकायतकर्ता ईसाई धर्म अपना चुके हैं और एक दशक से पादरी के रूप में काम कर रहे हैं, अतः वह अनुसूचित जाति के सदस्य नहीं रह गए हैं। संविधान (अनुसूचित जातियों) आदेश, 1950 के अनुसार हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों को मानने वाले व्यक्ति अनुसूचित जाति नहीं माने जा सकते

ALSO READ -  अभियुक्त को केवल इसलिए डिफ़ॉल्ट जमानत नहीं दी जा सकती, क्योंकि वैध प्राधिकरण की मंजूरी के बिना चार्जशीट दायर की गई है: सुप्रीम कोर्ट

📑 प्रतिकर्ता का पक्ष:

प्रतिकर्ता ने दावा किया कि उनके पास वैध जाति प्रमाण पत्र है, जिसे तहसीलदार द्वारा जारी किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि जांच में पुलिस ने 10 से अधिक गवाहों के बयान दर्ज किए हैं और चार्जशीट उचित प्रक्रिया से दाखिल हुई है।


🧾 न्यायालय का अवलोकन:

न्यायमूर्ति हरिनाथ. एन ने कहा कि जब गवाहों ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि शिकायतकर्ता पिछले दस वर्षों से पादरी के रूप में कार्यरत हैं, तो पुलिस को SC/ST एक्ट की धाराओं में आरोप पत्र दाखिल नहीं करना चाहिए था। कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल दो गवाहों ने झगड़े की पुष्टि की, जबकि 30 लोगों के शामिल होने का आरोप चार्जशीट में स्पष्ट नहीं है।

मुख्य प्रश्न पर विचार करते हुए कि क्या शिकायतकर्ता, जो लंबे समय से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है, अब भी अनुसूचित जाति के सदस्य के रूप में SC/ST एक्ट के तहत संरक्षण पा सकता है — कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 3 के अनुसार यह संरक्षण केवल उन्हीं को प्राप्त है जो स्वयं को अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य के रूप में स्थापित कर सकते हैं


📜 जाति प्रमाण पत्र का गैर-रद्द होना पर्याप्त नहीं:

कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि जाति प्रमाण पत्र का केवल रद्द न होना यह अधिकार नहीं देता कि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन के बाद भी SC/ST एक्ट की सुरक्षा का लाभ उठाए। जाति प्रमाण पत्र की वैधता की जांच आंध्र प्रदेश समुदाय प्रमाण पत्र अधिनियम, 1993 की धारा 5 के तहत ही की जा सकती है।

ALSO READ -  दिल्ली सरकार मुस्लिम शादियों का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन सिस्टम बनाये - दिल्ली हाईकोर्ट

🔚 फैसला:

अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि यह शिकायत संरक्षणात्मक कानून का दुरुपयोग है, और इस मामले में मुकदमे की कार्यवाही का कोई औचित्य नहीं है। अतः अदालत ने सभी कार्यवाहियों को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को राहत प्रदान की।


📌 मामला: अक्कला रामी रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य
📌 मामला संख्या: क्रिमिनल पिटीशन संख्या 7114/2022

Translate »