उच्च न्यायालय ने आईएफएस अधिकारी की याचिका सुनवाई के दौरान कहा, वादी का वकीलों पर भरोसा नहीं होना दुखद-

उच्च न्यायालय ने आईएफएस अधिकारी की याचिका सुनवाई के दौरान कहा, वादी का वकीलों पर भरोसा नहीं होना दुखद-

हाई कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति का बार के सदस्यों पर भरोसा नहीं है, ऐसे में वकीलों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए. यह टिप्पणी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस आरएस चौहान और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की बेंच ने भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की याचिका पर सुनवाई के दौरान की.

उत्तराखंड हाई कोर्ट Uttrakahnd High Court ने पिछले सप्ताह एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि यह दुखद है कि एक वादी ने कहा है कि “उसे वकीलों पर भरोसा नहीं है.”

हाई कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति का बार के सदस्यों पर भरोसा नहीं है, ऐसे में वकीलों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए. यह टिप्पणी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस आरएस चौहान और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की बेंच ने भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की याचिका पर सुनवाई के दौरान की.

हल्द्वानी में मुख्य वन संरक्षक के रूप में तैनात संजीव चतुर्वेदी ने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख किया था, जिसमें उनकी याचिका ट्रिब्यूनल की दिल्ली बेंच में ट्रांसफर कर दी गई थी. उन्होंने पिछले साल फरवरी में CAT की नैनीताल बेच के समक्ष एक मामला दायर किया था, जिसमें संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के स्तर के अधिकारियों के लिए 360-डिग्री मूल्यांकन (अप्रेजल) प्रणाली और सरकारी पदों पर निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती को चुनौती दी गई थी.

संजीव चतुर्वेदी ने हाई कोर्ट की डिविजन बेंच के सामने अपील की थी कि उन्हें अपने मामले की स्वयं पैरवी करने की अनुमति दी जाए और वे वकील नहीं चाहते हैं.

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हालांकि बेंच ने सुझाव दिया कि इस मामले में एमिकल क्यूरी (न्याय मित्र) की नियुक्ति की जानी चाहिए क्योंकि याचिका में कई मुकदमें शामिल हैं जिसे जांच करने की जरूरत है और CAT के खिलाफ भी कई आरोप हैं. बेंच ने कहा कि सरकार में संयुक्त सचिव स्तर पर लैटरल एंट्री से कई अन्य कानूनी मुद्दे उठ रहे हैं और इसलिए उनकी ओर से एक सीनियर वकील की नियुक्ति ‘न्याय के हित’ में होगा.

हालांकि चतुर्वेदी ने कहा कि उनका बार के सदस्यों से भरोसा उठ गया है. उन्होंने कहा कि इससे पहले उनके लिए पेश होने वाले कई वकीलों को आपराधिक मानहानि का सामना करना पड़ा था और इसलिए अगर असंभव नहीं हो, तो उन्हें किसी वकील की सेवा लेना काफी मुश्किल लगता है.

व्यक्तिगत रूप से पेश होने की मिली अनुमति-

कोर्ट ने पिछले महीने अपने आदेश को सुरक्षित रख लिया था और इसकी कॉपी सोमवार को ऑनलाइन अपलोड की गई. सोमवार को पारित आदेश में बेंच ने कहा, “इस अदालत का मानना है कि संजीव चतुर्वेदी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने और अपने मामले पर बहस करने की अनुमति दी जानी चाहिए.”

कोर्ट ने कहा, “यह जानकर दुख होता है कि वादी को बार के सदस्यों पर भरोसा नहीं है. लेकिन, शायद यह संजीव चतुर्वेदी के मन में गलत धारणा है. बार में ईमानदार और मेहनती वकीलों की कमी नहीं है. हालांकि इस तरह की धारणा को लेकर बार के सदस्यों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए.”

अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 23 अक्टूबर तय की है.

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