Police System के खामियों को दूर करने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों के 17 वर्ष बाद भी इन निर्देशों का पुर्णतः अनुपालन नहीं

Police System के खामियों को दूर करने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों के 17 वर्ष बाद भी इन निर्देशों का पुर्णतः अनुपालन नहीं

प्रकाश सिंह जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश-

देश में पुलिस-सुधार के प्रयासों की भी एक लंबी श्रृंखला है, जिसमें विधि आयोग, मलिमथ समिति, सोली सोराबजी समिति तथा सबसे महत्त्वपूर्ण प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ 2006 मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों में पुलिस व्यवस्था में सुधर हेतु कई सिफारिशें शामिल हैं।

करीब डेढ़ दशक पहले ऐतिहासिक प्रकाश सिंह फैसले के बावजूद पुलिस पोस्टिंग में राजनीतिक हस्तक्षेप की खबरें आती रहती हैं । भारत में पुलिस सुधारों की दिशा में ‘प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ मामला (2006)’ मील का पत्थर है लेकिन इसके निर्देशों को लागू करने में अभी भी राज्य सरकारें सक्रियता नहीं दिखा रहीं हैं। समय की मांग के हिसाब से आज की पुलिस व्यवस्था को देखते हुए जल्द से जल्द इन सुधारों को अमली जामा पहनाने की जरुरत है।

दरअसल, देश में पुलिस-सुधार के प्रयासों की भी एक लंबी श्रृंखला है, जिसमें विधि आयोग, मलिमथ समिति, सोली सोराबजी समिति तथा सबसे महत्त्वपूर्ण प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ 2006 मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों में पुलिस व्यवस्था में सुधर हेतु कई सिफारिशें शामिल हैं।

प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ 2006 मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों के लगभग 17 वर्ष बीतने के बावज़ूद हम इन निर्देशों का पुर्णतः अनुपालन नहीं कर पाए हैं। आइये समझतें हैं क्या था मामला-

पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह का मामला-

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसला वर्ष 2006 में आया। तब प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ मामले में डीजीपी की नियुक्ति और हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम दिशानिर्देश दिए थे। इसे प्रकाश सिंह मामला कहा जाता है क्योंकि शीर्ष अदालत ने यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की PIL (Public Interest Litigation) पर आदेश दिया था, लेकिन 17 वर्षों के बाद भी वो निर्देश ठन्डे बस्ते में बंद हैं।

ALSO READ -  Evidence Act की धारा 106 उन मामलों पर लागू होगी जहां अभियोजन पक्ष उन तथ्यों को स्थापित करने में सफल रहा है - उच्चतम न्यायालय

DGP की नियुक्ति-

किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में पुलिस विभाग की कमान डीजीपी के हाथों में होती है, यानी कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार सबसे वरिष्ठ अधिकारी। इस पद पर सीधे नियुक्ति नहीं होती है। एसपी, एसएसपी, डीआईजी, आईजी, एडीजीपी के बाद पुलिस महानिदेशक का पद मिलता है।

अब तक ऐसा चला आ रहा है कि UPSC तीन सबसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का एक पैनल राज्य सरकार को भेजता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार डीजीपी की नियुक्ति कम से कम दो वर्ष के लिए होती है।

डीजीपी को हटाने की प्रक्रिया-

सर्विस रूल्स के उल्लंघन या क्रिमिनल केस में कोर्ट का फैसला आने, भ्रष्टाचार साबित होने पर शुरू होती है किसी राज्य के डीजीपी के हटाने की प्रक्रिया, या फिर डीजीपी को तब हटाया जा सकता है जब वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हों।

शीर्ष अदालत का फैसला-

कोर्ट ने कहा था कि डीजीपी का कार्यकाल कम से कम दो साल का होना चाहिए। बाद में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यूपीएससी सुनिश्चित करे कि डीजीपी पद के लिए दिए जाने वाले अधिकारी ऐसे हों जो दो साल बाद रिटायर हो रहे हों। कुछ मामलों में ऐसा देखा गया रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके अधिकारियों को डीजीपी बना दिया गया।

SC के मुताबिक किसी भी अधिकारी को डीजीपी बनाने से पहले उसे ट्रेनी (Trainee) बनाना जरूरी है। कम से कम वह डीजी रैंक का अधिकारी रहा हो। कोर्ट ने साफ़ कह दिया था कि कार्यवाहक के तौर पर डीजीपी पद पर कोई नियुक्ति नहीं होगी।

ALSO READ -  कॉलेजियम पर सुप्रीम कोर्ट और सरकार में रार, कानून मंत्री का कहना है की कॉलिजियम सिस्टम हमारे संविधान के प्रति सर्वथा अपिरिचित शब्दावली है

DGP का कार्यकाल समाप्त होने से पहले राज्य सरकार इस पद के लिए नए नाम UPSC को भेजेगी। इस लिस्ट को बढ़ा-घटाकर तीन वरिष्ठ अधिकारियों के नाम UPSC वापस भेजेगा। इसमें से राज्य सरकार किसी भी नाम का चयन कर सकती है।

इस रैंक पर प्रमोशन के लिए यानी पुलिस बल को लीड करने के लिए संबंधित व्यक्ति का अच्छा रेकॉर्ड और अनुभव होना चाहिए।

ज्ञात हो कि सितंबर 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पुलिस सुधार लाने का निर्देश भी दिया था।

प्रकाश सिंह फैसले में क्या उपाय सुझाये दिए गये थे?

सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस स्थापना बोर्ड (Police Establishment Board) द्वारा अधिकारियों की पोस्टिंग करने का भी निर्देश दिया। इसका उद्देश्य पोस्टिंग और ट्रांसफर की शक्तियों को राजनीतिक नेताओं से अलग करना है। पीईबी में पुलिस अधिकारी और वरिष्ठ नौकरशाह शामिल हैं। इसके अलावा, राज्य पुलिस शिकायत प्राधिकरण (SPCA) स्थापित करने का भी निर्देश दिया गया और कहा गया कि इसे एक ऐसे मंच के रूप में काम करना चाहिए जहां पुलिस कार्रवाई से पीड़ित आम लोग संपर्क कर सकें.

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस व्यवस्था में बेहतर सुधार के लिए जांच और कानून व्यवस्था कार्यों को अलग करने का निर्देश दिया।

इन निर्देशों के तहत राज्य सुरक्षा आयोग (SSC) की स्थापना का भी सुझाव दिया और साथ ही एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग का गठन किये जाने की बात कही गई थी।

केस टाइटल – प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ

Translate »
Scroll to Top