केंद्र सरकार ने 25 जुलाई और 14 अगस्त के दोनों निर्णयों की समीक्षा की मांग की
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा सुनाए गए इस फैसले में 8:1 बहुमत का फैसला था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा सुनाए गए इस फैसले में 8:1 बहुमत का फैसला था। पहला आदेश 25 जुलाई को आया था और उसके बाद 14 अगस्त को दिए गए आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस फैसले का भविष्य में कोई प्रभाव नहीं होगा। इसने खनिज समृद्ध राज्यों को 1 अप्रैल, 2005 से केंद्र सरकार और खनन कंपनियों से बकाया वसूलने की अनुमति दी। इसका मतलब यह होगा कि केंद्र सरकार को अब राज्यों को हजारों करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा।
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को लेकर परेशान है। इस फैसले में राज्यों को खनन और खनिज वाली जमीन पर टैक्स लगाने का अधिकार दिया गया है। केंद्र सरकार का कहना है कि इससे बहुत बड़ा आर्थिक बोझ पड़ेगा। केंद्र ने इस फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की है और कहा है कि इसमें कई गलतियां हैं। केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश को साथ लेकर इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है। केंद्र का कहना है कि यह मामला देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़ा है। साथ ही, यह जनहित का मुद्दा है और अगर इस पर खुली अदालत में सुनवाई नहीं हुई तो बड़ा अन्याय होगा।
अब, केंद्र सरकार ने 25 जुलाई और 14 अगस्त के दोनों निर्णयों की समीक्षा की मांग की है। केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि निर्णय में व्यावहारिक वास्तविकताओं के साथ-साथ संसाधन के रूप में खनिजों के वृहद-आर्थिक प्रभाव को भी नजरअंदाज किया गया है।
‘संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार?’
वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी कुछ खनिज संपन्न राज्यों की तरफ से पेश हुए। उन्होंने मांग की कि 9 जजों की बेंच के फैसले के बाद बकाया राशि से जुड़े मामलों को जल्द से जल्द एक नियमित बेंच के सामने सूचीबद्ध किया जाए ताकि राज्यों को जल्द से जल्द वित्तीय राहत मिल सके। इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी ने CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि केंद्र और टाटा समूह की एक इकाई ने इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है। यह सुनकर CJI ने कहा, ‘संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार?’
बिना टैक्स दिए खनिजों के खनन को हुआ काफी फायदा-
राकेश द्विवेदी ने कहा कि केंद्र द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर करना इस बात का संकेत है कि PSU, जिन्हें दशकों से बिना रॉयल्टी या टैक्स दिए खनिजों के खनन से भारी फायदा हुआ है, अब न्यूनतम राशि भी नहीं देना चाहते हैं। केंद्र और निजी कंपनियों ने अदालत से अनुरोध किया था कि राज्यों द्वारा खनिजों पर लगाया जाने वाला शुल्क भविष्य से लागू हो। इस पर 9 जजों की पीठ ने 14 अगस्त को स्पष्ट किया कि रॉयल्टी और खनिज वाली जमीन पर लगने वाले टैक्स का बकाया 2005 से अगले 12 वर्षों में किश्तों में राज्यों को दिया जाएगा। यह भी स्पष्ट किया गया कि बकाया राशि पर ब्याज नहीं लगेगा।
बिना ब्याज के, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) पर वित्तीय बोझ लगभग 70,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। अगर निजी क्षेत्र के उद्योगों से 2005 से बकाया राशि को भी इसमें शामिल किया जाए तो यह आंकड़ा बढ़कर 1.5 लाख करोड़ रुपये हो जाता है। इस फैसले से सबसे ज्यादा फायदा खनिज संपन्न राज्यों झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और राजस्थान को होगा। केंद्र सरकार ने 9 जजों की पीठ के फैसले को भविष्य से लागू करने की मांग करते हुए कहा था कि अगर इसे पूरी तरह से लागू किया जाता है तो इससे बहुत बड़ा आर्थिक बोझ पड़ेगा, जिससे कई PSU और उद्योग बर्बाद हो सकते हैं। साथ ही, इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान होगा और लगभग सभी उत्पादों की कीमतें बढ़ जाएंगी।