कलकत्ता उच्च न्यायलय ने नाबालिक के साथ दुष्कर्म के मामले में एक अहम निर्णय जारी करते हुए कोर्ट ने दोषी को साढ़े पांच साल की कैद की सजा और 3,000 रुपये का जुर्माना बरकरार रखा।
मामले में पीड़ित पक्ष की ओर से नाबालिग लड़की को बहला फुसला कर एकांत स्थान पर ले जाने और उसे अंडरगार्मेंट उतारने का दबाव डालने का आरोप गया था।
कोर्ट को अवगत कराया गया था कि जब नाबालिग लड़की ने मना किया तो उसने जबरदस्ती अंडरगारमेंट खोल दिया था।
प्रस्तुत मामला नवंबर 2008 का है। जब पश्चिम बंगाल की पश्चिम दिनाजपुर अदालत ने दुष्कर्म के प्रयास के मामले में एक शख्स को दोषी ठहराया गया था। मामले में अदालत ने दोषी पर साढ़े पांच साल की कैद की सजा सुनाई और उन पर 3,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था। मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद शख्स ने पश्चिम दिनाजपुर अदालत के आदेश को हाईकोर्ट मे चुनौती दी थी।
याचिका में दावा किया गया कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया था।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसका कोई गलत इरादा नहीं था और वह लड़की के प्रति अपने पिता के स्नेह को व्यक्त करना चाहता था।
इस घटना का पता तब चला था जब नाबालिग के जबरदस्ती इनरवियर उतारने के बाद लड़की ने चीखना शुरू कर दिया। बच्ची की आवाज चुन आसपास के लोग पहुंच गए और उसे बचा लिया। बाद में आरोपी को पुलिस के हवाले कर दिया।
हाईकोर्ट में याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बंदोपाध्याय ने कहा, “पीड़िता को दोषी ने अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए आइसक्रीम का लालच दिया था। जब पीड़िता ने दोषी के कहे अनुसार अपने अंडरगार्मेंट्स उतारने से इनकार कर दिया तो उसने जबरदस्ती उसके कपड़े उतारे। स्नेह की अभिव्यक्ति के रूप में इस तरह का व्यवहार किया जाता है।”
कोर्ट ने कहा कि जबरन अंडरगार्मेंट उतारना बलात्कार के प्रयास के बराबर है।
उच्च न्यायलय द्वारा याचिका पर आदेश पारित करते हुए निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा।