दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में हत्या का मुकदमा जारी रहेगा।
जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई की, लेकिन कोई औपचारिक रोक आदेश पारित नहीं किया गया। न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका में दलीलें जारी रहेंगी, लेकिन इस बीच कोई रोक आदेश नहीं दिया गया। अदालत 29 नवंबर को सुनवाई जारी रखेगी।
जारी रहेगा मुकदमा- हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मुकदमा जारी रहेगा और मौजूदा कार्यवाही के नतीजे भी उसी पर निर्भर होंगे। टाइटलर के वकील ने कहा कि मामला 12 नवंबर को ट्रायल कोर्ट के समक्ष अभियोजन पक्ष के गवाह के साक्ष्य की रिकॉर्डिंग के लिए सूचीबद्ध किया गया था और ट्रायल कोर्ट से तब तक आगे नहीं बढ़ाने के लिए कहा गया था, जब तक कि हाई कोर्ट आरोप तय करने के आदेश के खिलाफ उनकी याचिका पर फैसला नहीं कर लेता।
टाइटलर के खिलाफ हत्या और अन्य अपराधों के लिए आरोप तय किए गए, जिसमें गैरकानूनी तरीके से एकत्र होना, दंगा करना और दुश्मनी को बढ़ावा देना शामिल है। टाइटलर ने इन आरोपों में खुद को निर्दोष बताया।
अपने खिलाफ हत्या और अन्य आरोपों को तय करने को चुनौती देने वाली टाइटलर की याचिका 29 नवंबर को सूचीबद्ध है, लेकिन उन्होंने मुकदमे पर रोक लगाने की याचिका के साथ अदालत का रुख किया।उनकी याचिका में कहा गया है कि अभियोजन पक्ष की गवाह की गवाही ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज की गई थी और बचाव पक्ष के वकील द्वारा उससे जिरह 12 नवंबर के लिए निर्धारित की गई थी।वहीं, दंगा पीड़ितों के वकील एच एस फुल्का ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि गवाह बुजुर्ग हैं और उन्हें कई तरह बीमारियां हैं, उन्हें कई बार अदालत में पेश होना पड़ा है। उन्होंने कहा कि वह चौथी बार अदालत में पेश होंगी।
टाइटलर ने अपने बचाव में ये कहा-
टाइटलर ने ‘विच-हंट’ का शिकार होने का दावा किया है और दलील दी है कि उनके खिलाफ आरोप तय करने का ट्रायल कोर्ट का आदेश ‘विकृत, अवैध और दिमाग के इस्तेमाल की कमी’ था। उनकी याचिका में कहा गया, ‘ट्रायल कोर्ट ने आरोप के बिंदु पर कानून के स्थापित सिद्धांतों की अनदेखी करते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ गलत तरीके से आरोप तय किए हैं।’ टाइटलर ने कहा कि उनके खिलाफ आरोपों की पुष्टि करने के लिए कोई विश्वसनीय सबूत नहीं हैं और ट्रायल कोर्ट का आदेश ‘गलत तरीके से’ पारित किया गया था और इसे रद्द किया जा सकता है।
वाद शीर्षक – जगदीश टायलर बनाम सीबीआई और अन्य।