अगर आप दूसरी शादी करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको तलाक लेना होगा-
Hindu Marriage Act Of 1955 – हमारे देश में हिन्दू विवाह एक धार्मिक और कानूनी प्रक्रिया है. ये Hindu Marriage Act Of 1955 के तहत आता है. अगर आप विवाह (Marriage) के रिश्ते (Relation) से खुश नहीं है और अलग होना चाहते हैं, तो कानून आपको तलाक (Divorce ) के जरिए इसे समाप्त करने की अनुमति देता है.
तलाक़ के प्रकार-
तलाक (Divorce) दो तरह से होते हैं एक पारस्परिक आपसी सहमति से तलाक (Mutual Divorce) और दूसरा एकतरफा तलाक की अर्जी लगाना (Contested Divorce) कहलाता है. आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया में दोनो पक्ष यानि पति पत्नी पारस्परिक रूप से अलग होने और विवाह को खत्म करने का फैसला लेते हैं.
आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13B (Hindu Marriage Act Section 13 B) के तहत एक प्रावधान (Provision) दिया गया है. इसमें कुछ शर्तें दी गई हैं जिन्हें दोनों पक्षों की ओर से पूरा किया जाना जरूरी है. जानते हैं तलाक कैसे फाइल कर सकते हैं. तलाक देने के लिए क्या शर्तें पूरी करनी पड़ती हैं. आपसी सहमति से तलाक की पूरी प्रक्रिया क्या है?
विधि जानकारों के मुताबिक ‘अंग्रेजों के समय से पहले हिंदू विवाह एक धार्मिक संस्कार था then Hindu Mrriage was relagious ceromony, जिसमें तलाक या अलग होने का कोई प्रावधान नहीं था. शादी को कई जन्मों का रिश्ता माना जाता था, लेकिन अंग्रेजों के शासन काल में हिंदू मैरिज एक्ट 1955 Hindu Marriage Act 1955 में भी तलाक के प्रावधान को जोड़ा गया. इसके बाद से एक पत्नी रखना हिंदू विवाह की प्रमुख शर्त है. अगर आप दूसरी शादी करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको तलाक लेना होगा.’
आपसी सहमति के तलाक (Divorce By Mutual Consent) लेने की शर्तें-
1- पति और पत्नी एक साल या उससे ज्यादा समय से अलग रह रहे हों.
2- दोनों में पारस्परिक रूप से सहमत होने और एक दूसरे के साथ रहने पर कोई सहमति न हो.
3- अगर दोनों पक्षों में सुलह की कई स्थिति नज़र नहीं आती को आप तलाक (Divorce ) फाइल कर सकते हैं.
4- इसमें दोनों पक्षों की ओर से तलाक की पहली याचिका लगाने के कोर्ट की ओर से 6 महीने का समय दिया जाता है. इस दौरान कोई भी पक्ष याचिका वापस भी ले सकता है.
5- नए नियम में अब आप 6 महीने के समय को कम कराने के लिए एप्लीकेशन भी दे सकते हैं. कोर्ट सभी पहलुओं को जांचने के बाद इस समय को कम भी कर सकता है.
6- आपको पहील याचिका डालने के बाद 18 महीने के अंदर दूसरी याचिका डालनी पड़ती है. अगर 18 महीने से ज्यादा वक्त हुआ, तो आपको फिर से पहली याचिका ही डालनी पडेगी.
7- यानि नए तरीके से फिर से तलाक को लेकर याचिका डालनी पड़ेगी.
8- अगर दूसरी याचिका के वक्त कोई एक पक्ष केस वापस लेता है तो उस पर जर्माना और पेनल्टी लगती है.
पारस्परिक तलाक (Traditional Divorce) की प्रक्रिया क्या होती है?
1- सबसे पहले तलाक के लिए दोनों पक्षों की ओर से हस्ताक्षर की गई एक संयुक्त याचिका फैमिली कोर्ट में दायर की जाती है.
2- इस तलाक याचिका में दोनों पार्टनर का एक संयुक्त बयान होता है जिसमें दोनों अपने आपसी मतभेदों की वजह से एक साथ नहीं रह सकते और तलाक लेने की बात कहते हैं.
3- इस बयान में बच्चों और संपत्तियों के बंटवारे के बारे में भी समझौता शामिल होता है.
4- बयान दर्ज करने के बाद माननीय न्यायालय के सामने पेपर पर हस्ताक्षर किए जाते हैं.
5- इसके बाद दोनों पक्ष को सुलह करने या मन बदलने के लिए 6 महीने का समय दिया जाता है.
6- अगर इन प्रस्ताव के 6 महीने में दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बनती है तो अंतिम सुनवाई के लिए यानि दूसरे प्रस्ताव के लिए उपस्थित होंगे.
7- अगर दूसरा प्रस्ताव 18 महीने की अवधि में नहीं लाया गया, तो अदालत तलाक के आदेश को पारित नहीं करेगी.
8- इसमें एक पक्ष आदेश के पारित होने से पहले किसी भी समय अपनी सहमति वापस भी ले सकता है.
9- ऐसे मामले में अगर पति और पत्नी के बीच कोई पूर्ण समझौता न हो या अदालत पूरी तरह से संतुष्ट न हो, तो तलाक के लिए आदेश नहीं दिया जा सकता है.
10- अगर अदालत को ठीक लगे, तो अंतिम चरण में तलाक का आदेश दिया जाता है.
क्या तलाक के बिना पुनर्विवाह कर सकते हैं?
दोबारा शादी करने के लिए तलाक लेना एक जरूरी शर्त है. अगर आप तलाक की प्रक्रिया को पूरा किए बिना ही शादी करते हैं तो ये सेक्शन 494 ऑफ इंडियन पीनल कोर्ट के तहत एक जुर्म है. इसमें 7 साल की सजा और कारावास का प्रावधान है.
तलाक के बाद बच्चों की हिरासत और संपत्ति का फैसला?
पारस्परिक सहमति से लिए गए तलाक में दोनों पक्ष को बच्चों की हिरासत के मुद्दे सुलझाने की जरूरत होती है. ऐसी स्थिति में माता-पिता में से किसी एक को बच्चों को या दोनों को बच्चों के रखने की कस्टडी मिलती है. वहीं प्रॉपर्टी का मामला भी दोनों को आपसी सहमति के निपटाना पड़ता है. अगर पत्नी पति पर आश्रित हो उसे गुजारा भत्ता आपसी समझौते से दिया जाएगा. जरूरत पड़ने पर आप कानून का सहारा भी ले सकते हैं.
(यह खबर कानून के जानकारों से की गई बातचीत पर आधारित है.)