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न्याय की आस : पिछले 41 सालों में बांग्लादेश के हिंदुओं ने गंवाई लाखों एकड़ जमीन, जमीन लौटाने में कितना कारगर होगा नया कानून

पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन में 13 डिसमिल जमीन के लिए दस्तावेजी जंग लड़ रहे नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की जमीन बांग्लादेश सरकार ने जब्त कर ली थी, पर लौटाने का वादा आज तक लटका ही है।

बांग्लादेश में हिंदुओं और मंदिरों पर हमले की घटनाएं देश-विदेश में सुर्खियां बनती हैं, पर उस देश की आजादी के पहले से हिंदुओं की भूमि कब्जाने का सिलसिला लगातार जारी है। बांग्लादेश को आजादी दिलाने के लिए भारत ने भी अपने जवानों की कुर्बानी दी। उस समय भी भारत का एहसान माना गया था और आज भी माना जाता है। भारत मित्र देशों में गिना जाता है, पर वहां कट्टरपंथी ताकतों का इतना जोर है कि आज भी सरकार ने नाम बदलकर शत्रु संपत्ति अधिनियम को लागू किए हुए है। यह एक्ट बांग्लादेश के पाकिस्तान में शामिल रहने के दौरान बना था। 1971 में पाकिस्तान से आजादी मिलने के बाद भी सरकार ने इस एक्ट को जारी रखा।

छह नवंबर, 2008 को बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने शत्रु संपत्ति कानून (आपात प्रावधान जारी रखना) (रिपील) एक्ट 1974 के संबंध में बांग्लादेश सरकार पर नियम निसी लागू किया और अर्पिता संपत्ति प्रत्यापन आइन संबंधी सर्कुलर और इसके प्रशासनिक आदेशों को लागू करने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने चार सप्ताह के भीतर हिंदुओं व अन्य समुदायों की हड़पी गई जमीन वापस लौटाने को कहा था। इसके बाद बीते 15 सालों में पद्मा नदी का अरबों लीटर पानी समुद्र में समा चुका है, पर अदालत का आदेश ठंडे बस्ते में ही पड़ा है। सरकार ने न पुनर्विचार याचिका डाली और न माननीय अदालत ने अवमानना का मामला चलाने की जहमत उठाई। इससे एक बार फिर साबित हो गया कि वहां अदालतें भी कट्टरपंथी ताकतों के आगे नतमस्तक हैं। हिंदू समुदाय धरना देता रहे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। चालाकी देखिए कि हसीना सरकार ने शत्रु संपत्ति कानून का नाम बदलकर वेस्ट प्रॉपर्टी एक्ट कर दिया है।

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कायदे से यह एक्ट उन पर लागू होना चाहिए था, जो 1971 के युद्ध के बाद अपनी संपत्ति छोड़कर पश्चिमी पाकिस्तान गए, मगर शायद हसीना और खालिदा जिया की सरकारों ने हिंदुओं को ही शत्रु मान लिया है। तभी तो 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के हाथों शहीद हुए हिंदू राजनेता धीरेंद्र नाथ दत्त की संपत्ति पर सरकार ने तुरंत कब्जा कर लिया। तर्क यह दिया गया था कि उनका शव नहीं मिला था। इसके अलावा वर्तमान में बंगाल के शांति निकेतन में 13 डिसमिल जमीन के लिए दस्तावेजी जंग लड़ रहे नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की सारी जमीन भी उनके भारत आने के बाद जब्त कर ली गई। पुरस्कार की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आने के बाद 1999 में बांग्लादेश सरकार ने घोषणा की कि वह सेन परिवार की जमीन लौटाने पर विचार कर रही है। हकीकत यह है कि आज तक वह सिर्फ विचार ही किए जा रही है।

‘हिंदुओं ने गंवाई अपनी लाखों एकड़ जमीन’-

बांग्लादेश के मशहूर अर्थशास्त्री व ढाका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अबुल बरकत के शोध के मुताबिक, एनिमी प्रापर्टी ऐक्ट या वेस्टेड प्रापर्टी ऐक्ट की वजह से बांग्लादेश में 1965 से 2006 के दौरान हिंदुओं ने लगभग 26 लाख एकड़ जमीन से अपना मालिकाना हक खो दिया है। बरकत के ही रिसर्च में यह भी कहा गया है कि बांग्लादेश में अपने खिलाफ हो रहे अत्याचारों के चलते बीते कुछ दशकों में लाखों हिंदुओं ने मुल्क छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय बौद्धों को भी अपनी जमीनों से हाथ धोना पड़ा है।

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’30 सालों में बांग्लादेश में एक भी हिंदू नहीं होगा’-

प्रोफेसर अबुल बरकत ने अपनी रिसर्च में कहा था कि 1964 से 2013 के बीच लगभग 1.13 करोड़ हिंदुओं ने बांग्लादेश छोड़ दिया और दूसरे देशों में जाकर बस गए। उन्होंने कहा कि देखा जाए तो इस अवधि में रोजाना 632 और सालाना 2,30,612 हिंदुओं ने देश छोड़ा। अपने 30 साल लंबे शोध में बरकत ने पाया था कि अधिकांश हिंदू आजादी के बाद सैन्य शासन के दौरान देश छोड़कर गए थे। अपनी रिसर्च में उन्होंने यह भी कहा कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले 30 सालों में बांग्लादेश में एक भी हिंदू नहीं बचेगा।

ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अब्दुल बरकत ने सन 2000 में प्रकाशित अपनी एक किताब में हिंदुओं की कब्जाई गई संपत्ति का एक आंकड़ा प्रस्तुत किया था। इसमें बताया गया था कि उस समय तक 7,48,850 हिंदू परिवारों की खेती की जमीन हड़पी गई थी। बांग्लादेश नेशनल हिंदू महाजोट के महासचिव गोविंद चंद प्रामाणिक ने मिडिया को बताया कि हिंदुओं के अलावा ईसाइयों, त्रिपुरा से सटे इलाकों में बसे मूरो, तांगचांग्या और संथाल जैसी जनजातियों की जमीनें भी कट्टरपंथियों की नजर की भेंट चढ़ चुकी हैं। यहां के भू माफिया ने बांग्लादेश के सबसे बड़े हिंदू मंदिर ढाकेश्वरी की जमीन भी नहीं बख्शी है। मालूम हो कि ढाकेश्वरी मंदिर के नाम पर ही ढाका का नामकरण हुआ है।

विडंबना देखिए कि नौ अक्तूबर, 2018 को हसीना सरकार ने ढाकेश्वरी मंदिर प्रशासन को पास की 50 करोड़ टाका (43 करोड़ रुपये) की डेढ़ बीघा जमीन महज 10 करोड़ टाका में देकर हिंदुओं की सहानुभूति अर्जित करने का प्रयास किया था। इसके अलावा सरकार ने हिंदू कल्याण ट्रस्ट के कोष को 21 करोड़ से बढ़ाकर 100 करोड़ कर दिया था। उस समय चुनावी मौसम था और अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरने के लिए ही सरकार ने यह उदारता दिखाई थी।

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बांग्लादेश में 2024 में भी चुनाव हैं और सरकार ने हिंदुओं की धार्मिक संपत्ति की रक्षा के लिए हाल में एक कानून का मसौदा बनाया है। नया कानून अधिकारियों को जमीन लौटाने के साथ-साथ ऐसी संपत्ति की सुरक्षा के लिए कदम उठाने की अनुमति दे सकता है। मगर सवाल उठता है कि एक समय खेतीबाड़ी कर अपने परिवार का गुजारा करने वाले हिंदू किसानों का क्या होगा, जो अपनी जमीन खोकर दूसरे के खेतों में मजदूरी करने को विवश हैं?

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