अगर वक्फ बोर्ड एक “धार्मिक संस्था” नहीं है, बल्कि एक “स्टेट इनेस्टूमेंट” या “स्टैच्यूटरी बॉडी” है, तो क्या इसमें गैर-मुस्लिम सदस्य भी हो सकते हैं या होने चाहिए?

अगर वक्फ बोर्ड एक “धार्मिक संस्था” नहीं है, बल्कि एक "स्टेट इनेस्टूमेंट" या "स्टैच्यूटरी बॉडी" है, तो क्या इसमें गैर-मुस्लिम सदस्य भी हो सकते हैं या होने चाहिए?

अगर वक्फ बोर्ड एक “धार्मिक संस्था” नहीं है, बल्कि एक “स्टेट इनेस्टूमेंट” या “स्टैच्यूटरी बॉडी” है, तो क्या इसमें गैर-मुस्लिम सदस्य भी हो सकते हैं या होने चाहिए?

यदि वक्फ बोर्ड “धार्मिक संस्था” नहीं है, तो उसमें गैर-मुस्लिमों को भी सदस्य बनाया जाना चाहिए — अन्यथा यह Article 14 और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।

आइए इसको कानूनी, संवैधानिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखते हैं:


🔷 1. वक्फ बोर्ड की कानूनी प्रकृति क्या है?

वक्फ अधिनियम, 1995 (संशोधित 2025) के अनुसार:

  • वक्फ बोर्ड एक Statutory Body है।
  • यह किसी “Religious Denomination” द्वारा नहीं, बल्कि राज्य द्वारा अधिनियमित कानून से बना है।
  • इसका प्रशासनिक कार्य वक्फ संपत्तियों का संरक्षण, प्रबंधन और नियंत्रण है।

📌 इसका अर्थ है — वक्फ बोर्ड का गठन संविधान के धार्मिक अधिकारों (Article 26) के तहत नहीं, बल्कि राज्य के कानून के तहत हुआ है। यह एक धार्मिक उद्देश्य की सार्वजनिक संस्था (Public Charitable Trust) का प्रशासनिक निकाय है, धार्मिक संस्था स्वयं नहीं


🔷 2. अगर यह धार्मिक संस्था नहीं है, तो क्या इसमें गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं?

यह प्रश्न Article 14 (समानता), Article 15(1) (धर्म के आधार पर भेदभाव निषेध) से जुड़ता है।

यदि कोई संस्था सार्वजनिक धन, सरकारी संरक्षण या विधायी संरचना से बनती है, तो उसके सदस्यों की नियुक्ति धर्म के आधार पर सीमित नहीं होनी चाहिए, जब तक वह कोई निजी धार्मिक संस्था न हो।

सुप्रीम कोर्ट की प्रासंगिक मिसालें:

  • Azeez Basha v. Union of India (1968) – अगर संस्था को राज्य बनाता है, तो वह निजी धार्मिक संस्था नहीं मानी जाती।
  • S.P. Mittal v. Union of India (1983) – धार्मिक “गुण” और “राज्य संरचना” अलग-अलग हैं।
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📌 निष्कर्ष: यदि वक्फ बोर्ड धार्मिक संस्था नहीं है, और राज्य नियंत्रित निकाय है, तो उसमें केवल मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्यता Article 14 का उल्लंघन मानी जा सकती है।


🔷 3. क्या वर्तमान कानून में नॉन-मुस्लिम सदस्य की अनुमति है?

नहीं
वक्फ अधिनियम की धारा 14 और 15 के अनुसार:

  • वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष मुस्लिम होना आवश्यक है
  • अधिकांश सदस्य भी मुस्लिम समुदाय से चुने जाते हैं — जैसे मुतवल्ली, सांसद, MLA, आदि।

👁 इसका अर्थ है:
वर्तमान ढांचा धार्मिक पहचान आधारित आरक्षण करता है, जबकि यह संस्था राजकीय (State-Controlled) है।


🔶 संवैधानिक आलोचना

सिद्धांतवक्फ बोर्ड
Article 14गैर-मुस्लिमों को बाहर रखना, भेदभाव
Article 15(1)धर्म के आधार पर सार्वजनिक संस्था में भागीदारी रोकी गई
Article 16सार्वजनिक पद पर समान अवसर बाधित
धर्मनिरपेक्षताराज्य नियंत्रित संस्था, परन्तु केवल एक धर्म के अधीन

📌 यदि सुप्रीम कोर्ट यह मानता है कि वक्फ बोर्ड राज्य संरचना के अंतर्गत आता है, तो इसमें केवल मुस्लिमों की नियुक्ति संवैधानिक रूप से अस्थिर हो सकती है।


🔚 निष्कर्ष

यदि वक्फ बोर्ड “धार्मिक संस्था” नहीं है, तो उसमें गैर-मुस्लिमों को भी सदस्य बनाया जाना चाहिए — अन्यथा यह Article 14 और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।

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