सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्णय कहा कि प्रेगनेंसी के दौरान माता-पिता के साथ मायके में रहना तलाक का नहीं हो सकता कारण-

सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्णय कहा कि प्रेगनेंसी के दौरान माता-पिता के साथ मायके में रहना तलाक का नहीं हो सकता कारण-

Madras High Court मामला तमिलनाडु का है, जिसमें याचिकाकर्ता ने 1999 में शादी कर ली। इसके कुछ समय बाद ही उसकी पत्नी गर्भवती होने पर अपने माता-पिता के यहाँ मायके चली गई। प्रेगनेंसी के दौरान माता-पिता के साथ रहना तलाक का कारण नहीं हो सकता। पति ऐसे केस को ‘क्रूरता’ की श्रेणी में नहीं डाल सकता।

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला-

जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने मामले की सुनवाई दौरान साफ कहा है कि गर्भावस्था के दौरान अगर कोई महिला अपने ससुराल वालों के बजाय अपने माता-पिता के साथ रहती है तो इस आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता है। साथ ही पति ऐसे केस को ‘क्रूरता’ की श्रेणी में नहीं डाल सकता।

सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा-

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यह बहुत स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता की पत्नी गर्भवती थी। इसलिए वह अपने माता-पिता के घर गई। यह स्वाभाविक था। याचिकाकर्ता की पत्नी ने भी साफ किया है कि उसकी गर्भावस्था और बच्चे का जन्म बड़ी मुश्किल से हुआ था, ऐसे में अगर उसने बच्चे के जन्म के बाद कुछ और समय माता-पिता के साथ रहने का फैसला किया तो इससे पति को परेशान नहीं होना चाहिए। केवल इस आधार पर तलाक के लिए मामला अदालत में कैसे ले जाया जा सकता है?

पति ने क्यों नहीं किया थोड़ा इंतजार –

पत्नी को ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है है कि मैं गर्भवस्था के कारण माता-पिता के पास रही थी, लेकिन पति ने थोड़ा इंतजार नहीं किया। याचिकाकर्ता की पत्नी ने यह भी स्पष्ट किया है कि उसकी गर्भावस्था और बच्चे का जन्म बड़ी मुश्किल से हुआ। उसने सोचा भी नहीं था कि वह एक बच्चे का पिता बन गया है। इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुए कि उसकी पत्नी के पिता का निधन हो गया और उसने तलाक के लिए अदालत में याचिका दायर की।

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22 वर्ष बाद आखिर हो गया तलाक-

इस सबसे बावजूद इस दंपत्ति के बीच को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी क्योंकि दोनों का वैवाहिक रिश्ता अब मर चुका है। दोनों 22 वर्ष से ज्यादा समय से अलग रह रहे हैं और पति ने दूसरी शादी भी कर ली थी। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि बेहतर होगा कि इस रिश्ते को खत्म माना जाता है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पूर्व पत्नी को 20 लाख रुपए का मुआवजा देने के लिए कहा।

तमिलनाडु का है पूरा मामला-

Madras High Court मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी। ये मामला तमिलनाडु का है, जिसमें याचिकाकर्ता ने 1999 में शादी कर ली। इसके कुछ समय बाद ही उसकी पत्नी गर्भवती होने पर अपने माता-पिता के पास चली गई। वहां उनके बच्चे का जन्म अगस्त 2000 में हुआ। फरवरी 2001 में उनके पिता का देहांत हो गया। इस वजह से वह कुछ और समय के लिए अपने ससुराल नहीं लौट पाईं। इसी आधार पर पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की। साथ ही अक्टूबर 2001 में दूसरी शादी की।

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