शेयर खरीद मामले: शेयर खरीद मामले में कर्नाटका उच्च न्यायालय ने भास्कर नायडू बनाम अरविंद यादव, WP No. 6985 of 2024 में 27 जनवरी 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। इस निर्णय में कोर्ट ने यह माना कि शेयर खरीद समझौते से उत्पन्न विवाद को “वाणिज्यिक विवाद” के तहत नहीं रखा जा सकता है, जैसा कि वाणिज्यिक अदालतों के अधिनियम, 2015 (Commercial Courts Act) में परिभाषित है। इस फैसले ने इस अधिनियम की व्याख्या को लेकर बहस छेड़ दी है, विशेष रूप से इस तथ्य के बावजूद कि 1930 के बिक्री अधिनियम के तहत “सामान” की परिभाषा में शेयर शामिल हैं।
मामले का पृष्ठभूमि
यह मामला भास्कर नायडू (शेयरधारक) और अरविंद यादव (खरीदार) के बीच एक विवाद से संबंधित था, जो एक कंपनी में शेयरों की बिक्री से जुड़ा हुआ था। विवाद तब उत्पन्न हुआ जब भास्कर नायडू ने शेयर खरीद समझौते के तहत अपनी हिस्सेदारी बेचने का प्रयास किया। जब दोनों पक्षों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ, तो अरविंद यादव ने वाणिज्यिक कोर्ट में पैसे की वसूली के लिए मुकदमा दायर किया। इस पर भास्कर नायडू ने वाणिज्यिक कोर्ट की न्यायक्षमता को चुनौती दी और दावा किया कि यह विवाद वाणिज्यिक विवाद के दायरे में नहीं आता है जैसा कि वाणिज्यिक अदालतों के अधिनियम में परिभाषित है।
कर्नाटका हाई कोर्ट का निर्णय
कर्नाटका उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में वाणिज्यिक अदालतों के अधिनियम की धारा 2(1)(c)(xii) पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें “शेयरधारक समझौतों” को वाणिज्यिक विवाद के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। कोर्ट ने “शेयरधारक समझौता” और “शेयर खरीद समझौता” की परिभाषाओं का विश्लेषण किया और निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह एक “शेयर खरीद समझौता” था और न कि “शेयरधारक समझौता”। इस संकीर्ण व्याख्या के आधार पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि यह विवाद वाणिज्यिक विवाद नहीं है और इसलिए वाणिज्यिक कोर्ट की न्यायक्षमता नहीं है।
विवाद के बिंदु
इस फैसले ने कुछ आलोचनाएँ उत्पन्न की हैं, क्योंकि कोर्ट ने वाणिज्यिक विवाद की परिभाषा के अन्य प्रावधानों की अनदेखी की है, खासकर 1930 के बिक्री अधिनियम के तहत “सामान” की परिभाषा को ध्यान में रखते हुए। वाणिज्यिक अदालतों के अधिनियम की परिभाषा बहुत व्यापक है और इसमें “सामान या सेवाओं की बिक्री” से संबंधित व्यापारिक लेनदेन शामिल हैं।
Sale of Goods Act, 1930 विक्री अधिनियम, 1930 में “सामान” की परिभाषा में “शेयर, स्टॉक्स, डिबेंचर, डिबेंचर स्टॉक्स और बाजार योग्य सुरक्षा” शामिल हैं। इसका मतलब है कि यदि शेयरों की खरीद-फरोख्त के दौरान कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो उसे बिक्री अधिनियम के तहत सामान की बिक्री माना जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, ऐसा विवाद वाणिज्यिक अदालतों के अधिनियम के तहत एक वाणिज्यिक विवाद माना जा सकता था।
संभावित प्रभाव और भविष्य की दिशा
इस फैसले से भारतीय वाणिज्यिक मुकदमों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। यह शेयर खरीद समझौते से उत्पन्न विवादों के वर्गीकरण को लेकर अस्पष्टता पैदा कर सकता है, जिससे न्यायक्षमता संबंधित समस्याएं और विवादों के समाधान में देरी हो सकती है। यह सवाल भी उठता है कि वाणिज्यिक अदालतों के अधिनियम की व्याख्या किस हद तक की जानी चाहिए और कोर्ट को विशिष्ट प्रावधानों पर निर्भर रहने के बजाय इसके व्यापक संदर्भ और संबंधित विधायिका को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना चाहिए।
निष्कर्ष
कर्नाटका हाई कोर्ट का यह निर्णय शेयर खरीद समझौतों से उत्पन्न विवादों के वर्गीकरण को लेकर आने वाली समस्याओं को उजागर करता है। यह निर्णय वाणिज्यिक अदालतों के अधिनियम की व्याख्या और उसकी व्यापकता पर सवाल उठाता है। यह फैसला इस बात का प्रतीक है कि वाणिज्यिक मुकदमेबाजी के क्षेत्र में जटिलताएं हो सकती हैं और विधायिका से उम्मीद की जाती है कि वह इन मुद्दों पर ध्यान दे और वाणिज्यिक अदालतों के अधिनियम में आवश्यक संशोधन करे ताकि विवादों का समाधान स्पष्ट और शीघ्र हो सके।
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