गुजरात हाईकोर्ट: अदालती कार्यवाही के लाइव स्ट्रीम किए गए वीडियो को एक अवधि के बाद हटाना अनिवार्य

गुजरात हाईकोर्ट: अदालती कार्यवाही के लाइव स्ट्रीम किए गए वीडियो को एक अवधि के बाद हटाना अनिवार्य

गुजरात हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने मंगलवार (5 फरवरी 2025) को यह निर्णय दिया कि अदालती कार्यवाही के लाइव स्ट्रीम किए गए वीडियो को एक निश्चित अवधि के बाद यूट्यूब से हटाना आवश्यक होगा।

न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और न्यायमूर्ति गीता गोपी की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार प्रधान न्यायाधीश के पास रहेगा।

कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां

यूट्यूब से हटाने का निर्णय प्रधान न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर
खंडपीठ ने कहा, “हमारी राय में, अदालत की कार्यवाही के वीडियो को एक निश्चित अवधि के बाद यूट्यूब से हटाया जाना चाहिए। हालांकि, इस निर्णय को मुख्य न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ दिया जाता है। रजिस्ट्री को इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश को अवगत कराने का निर्देश दिया जाता है।”

अवमानना याचिका पर सुनवाई
यह टिप्पणी उस समय की गई जब अदालत ने गुजरात ऑपरेशनल क्रेडिटर्स एसोसिएशन द्वारा दायर अवमानना याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया और अन्य प्रतिवादियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी।

न्यायालय के प्रति असम्मानजनक भाषा पर आपत्ति
खंडपीठ ने याचिका दायर करने वाले आवेदक और उनके वकील दीपक खोसला द्वारा न्यायाधीशों पर की गई ‘अनुचित टिप्पणियों’ पर नाराजगी व्यक्त की।

नियमों का उल्लंघन: लाइव स्ट्रीमिंग वीडियो का उपयोग अवैध

📌 गुजरात हाईकोर्ट (कोर्ट कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग) नियम, 2021 के तहत
खंडपीठ ने नियम 5 का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग का टेप सबूत के रूप में मान्य नहीं होगा।

📌 नियम 5 (e), (f), (g)
कोर्ट रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं होगा।
अदालती कार्यवाही से संबंधित किसी भी मुद्दे में इसे प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
किसी भी अधिकृत/प्रमाणित/आधिकारिक संस्करण के रूप में इसे नहीं माना जाएगा।

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📌 नियम 5 (d): हाईकोर्ट लाइव स्ट्रीम वीडियो पर कॉपीराइट रखेगा
लाइव वीडियो की अनधिकृत नकल, वितरण, पुनः उपयोग, संपादन, या व्यावसायिक उपयोग प्रतिबंधित रहेगा।
अनधिकृत उपयोग से न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत कार्यवाही हो सकती है।

📌 लाइव स्ट्रीम वीडियो से प्राप्त प्रतिलेख भी अस्वीकार्य
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि लाइव स्ट्रीम वीडियो से प्राप्त किसी भी प्रतिलेख को आधिकारिक साक्ष्य नहीं माना जाएगा और इसे अदालत में मान्यता नहीं दी जा सकती।

आवेदक पर ₹2 लाख का जुर्माना

अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए आवेदक पर ₹2 लाख का जुर्माना लगाया, जिसे दो सप्ताह के भीतर जमा करना होगा।

पृष्ठभूमि: अंतरिम आदेश और कानूनी विवाद

📌 8 अगस्त 2024:
एकल न्यायाधीश ने आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया (प्रतिवादी) द्वारा दायर रिट याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया।
6 जून 2024 तक संचार पर रोक लगा दी गई।

📌 आवेदक ने स्थगन समाप्त करने के लिए सिविल आवेदन दायर किया।
दलील दी कि 15 दिन की अवधि के बाद आदेश स्वतः समाप्त हो गया होगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ और यूपी राज्य बनाम अन्य (2024) मामलों का हवाला दिया।

📌 दो न्यायाधीशों ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिसके कारण अंतरिम आदेश प्रभावी बना रहा।

📌 आवेदक का तर्क:
प्रतिवादियों के वकीलों द्वारा समय बढ़ाने की मांग अवैध थी।
इससे उनका आवेदन निरर्थक हो गया।

निष्कर्ष

अदालत ने स्पष्ट किया कि लाइव स्ट्रीम किए गए वीडियो या उनसे प्राप्त किसी भी सामग्री को साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
आवेदक द्वारा किए गए अनुचित तर्कों को खारिज किया गया।
याचिका को अस्वीकार कर जुर्माना लगाया गया।

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