ALLAHABAD HIGH COURT ने कहा कि यदि लड़के की आयु 21 वर्ष से कम है तो शादी शून्य नहीं होगी, बल्कि शून्यकरणीय मानी जाएगी। यह HINDU MARRIAGE ACT 1955 हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-18 के तहत दंडनीय हो सकती है, किन्तु शादी पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि ज्यादा से ज्यादा, यह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 18 के तहत दंड के लिए उत्तरदायी व्यक्ति को उत्तरदायी बना सकता है।
मामले में चंदौली के थाना कंडवा में लड़की के पिता ने धारा 363 और 366 आईपीसी के तहत एक FIR एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप लगाया कि लड़की का अपहरण कर लिया गया है। उसे बेच दिया गया है या तो उसको मार डाला गया है।
FIR एफआईआर दर्ज होने के बाद, बेटी (प्रतीक्षा सिंह) और उसके पति करण मौर्य/आरोपी लड़के ने संयुक्त रूप से हाईकोर्ट के समक्ष मौजूदा रिट याचिका दायर की। उन्होंने इस आधार पर एफआईआर को रद्द करने की मांग की कि पीड़िता/बेटी और दूसरे याचिकाकर्ता/पति ने प्यार में पड़ गए हैं और उन्होंने शादी कर ली है और साथ रह रहे हैं।
बाद में लड़की के पिता/शिकायतकर्ता ने एक जवाबी हलफनामा दायर किया, जिसमें प्रार्थना के विरोध करने का एकमात्र आधार यह था कि विवाह को खुद कानूनी मान्यता नहीं है, क्योंकि दूल्हे ने शादी के समय 21 वर्ष की आयु पूरी नहीं की थी।
अवलोकन न्यायालय ने फैसले में कहा कि विवाह की वैधता को न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी गई थी और अधिनियम की धारा 5 (iii) का किसी भी प्रकार का उल्लंघन विवाह को अमान्य नहीं बना देगा। इसके बाद, न्यायालय ने धारा 11 (अमान्य विवाह) को ध्यान में रखते हुए कहा कि अमान्य विवाहों को परिभाषित करते समय, विधायिका ने धारा 5 के खंड (iii) का उल्लेख विशेष रूप से छोड़ दिया था, जिसके उल्लंघन के आधार पर विवाह को ही अमान्य कर दिया गया था।
इसी तरह, हिन्दू मैरिज एक्ट (एचएमए) की धारा 12 (अवैध विवाह) के संबंध में भी न्यायालय ने कहा कि यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि खंड 5 (iii) का कोई भी उल्लंघन विवाह को अमान्य कर देगा। यहां यह ध्यान दिया जा सकता है कि एचएम एक्ट का खंड 5 (iii) विवाह के समय दूल्हे की 21 वर्ष की आयु को और दुल्हन की 18 वर्ष की आयु को विवाह की शर्त बनाता है।
कोर्ट का कथन-
न्यायालय ने कहा, “केवल तथ्य यह है कि दूसरा याचिकाकर्ता 21 वर्ष से अधिक का नहीं था, विवाह को अमान्य नहीं करेगा। धारा 5 (iii) का कोई भी उल्लंघन अधिनियम की धारा 18 के अनुसार सजा के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराएगा। हालांकि, विवाह इस तरह के आधार पर खुद को संदिग्ध नहीं माना जाएगा।
आरोपी/पति के खिलाफ लड़की के पिता द्वारा लगाए गए अपहरण के आरोपों के संबंध में, अदालत ने कहा कि मामले के तथ्यों के आलोक में धारा 363 और 366 नहीं लागू होगी, जबकि एक बार यह दिखाया गया है कि पीड़िता अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी और उसका न तो अपहरण किया गया है और न ही उसे शादी के लिए मजबूर किया गया है।
निर्णय-
अपने निर्णय में अदालत ने कहा कि, दंपति द्वारा दायर रिट याचिका को स्वीकार करते हुए, “मामले के तथ्यों में, पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से अधिक है और एक बार जब वह दूसरे याचिकाकर्ता के साथ स्वेच्छा से गई थी, तो एफआईआर में प्रकट किए गए अपराध स्पष्ट रूप से लागू होते नहीं दिखाए गए हैं।”
केस टाइटल – प्रतीक्षा सिंह और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य
केस नंबर – CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. – 11007 of 2020
कोरम – न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा न्यायमूर्ति शमीम अहमद