मेरठ से समाजवादी पार्टी के विधायक रफीक अंसारी की हनक और दादगिरी तो देखिए. पहले तो गंभीर अपराध में लिप्त रहे, फिर मुकदमा हुआ और कोर्ट से गैर जमानती वारंट जारी हुए तो हनक में पेश नहीं हुए. ऐसा एक बार नहीं, बल्कि 101 बार हुआ. मतलब कि विधायक के खिलाफ 101 गैर जमानती वारंट जारी हुए लेकिन, उनमें से एक बार भी वो कोर्ट में पेश नहीं हुए.
HC ने कहा, ये एक खतरनाक मिसाल-
कोर्ट से 26 साल से फरार विधायक की हनक भी ऐसी कि कोर्ट से जारी वारंट एक बार भी तामील नहीं हुआ, मतलब कि एक बार भी सपा विधायक ने उसे रिसीव नहीं किया. उलटा अपने खिलाफ जारी गैर जमानती वारंट को रद कराने के लिए हाईकोर्ट पहुंच गए. हाईकोर्ट के जज ने जब पूरे मामले को देखा तो वो भी काफी सख्त हो गए. मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खतरनाक मिसाल माना है. साथ ही हाईकोर्ट ने सपा विधायक के रवैय्ये पर आपत्ति दर्ज की है.
विधायक रफीक अंसारी की याचिका हाईकोर्ट ने खारिज की-
ज्ञात हो कि सपा विधायक रफीक अंसारी के खिलाफ 1997 से 2015 के बीच 101 गैर जमानती वारंट जारी हुए. विधायक रफीक अंसारी ने बीते दिनों कोर्ट से जारी गैर जमानती वारंट को चुनौती दी थी. मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने की.
हाईकोर्ट ने क्या की टिप्पणी-
विधायक रफीक की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा कि वारंट को तामील न करा पाना और इस दौरान उसे विधानसभा सत्र में उपस्थित होने की अनुमति देना एक ऐसी मिसाल स्थापित करेगा जो कि राज्य मशीनरी और न्यायिक सिस्टम के निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की विश्वसनीयता को कम करता है. कोर्ट ने कहा कि कानून लागू करने के लिए जनता के बीच चुनिंदा बर्ताव नहीं किया जा सकता है. ऐसा करने में असफलता न सिर्फ लोकतंत्र के सिद्धांतों से समझौता होगा बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी पंगु कर देगा. कोर्ट ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों से उच्च नैतिकता के पालन की उम्मीद की जाती है.
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान यह भी कहा गया कि आरोपों का सामना करने वाले जनप्रतिनिधियों को कानूनी जवाबदेही से बचने की अनुमति देकर हम ‘कानून के शासन के प्रति दंडमुक्ति और अनादर की संस्कृति कायम रखने का जोखिम उठाते हैं.’
रफीक अंसारी पर 1995 में दर्ज हुआ था मुकदमा-
बता दें कि सितंबर 1995 में विधायक रफीक अंसारी समेत 35 से 40 अन्य व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी. जांच पूरी होने के बाद 22 आरोपियों के खिलाफ पहला आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया था. उसके बाद एक पूरक आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया, जिस पर संबंधित अदालत ने अगस्त 1997 में संज्ञान लिया. तब से रफीक अदालत में पेश ही नहीं हुए.
रफीक अंसारी 101 गैर जमानती वारंट पर भी पेश नहीं हुए-
मामला इतना गंभीर है कि 12 दिसंबर 1997 को गैर जमानती वारंट जारी किया गया. बार-बार गैर जमानती वारंट जारी होने पर भी रफीक अंसारी गंभीर नहीं दिखे. 101 बार गैर जमानती वारंट जारी होने के साथ ही कुर्की के आदेश भी हो गए. इसके बावजूद वह अदालत में कभी पेश नहीं हुए.
हाईकोर्ट की याचिका में रफीक अंसारी ने क्या कहा-
HC में दाखिल याचिका में विधायक रफीक अंसारी के वकील ने तर्क भी दिया कि मामले में मूल रूप से 22 आरोपियों को 15 मई 1997 में बरी कर दिया गया था. लिहाजा, विधायक रफीक के खिलाफ केस की करवाई रद करनी चाहिए.
हाईकोर्ट की टिप्पणी-
इस पर हाईकोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की. कहा, कोर्ट अपनी आंखें बंद करके मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती. मौजूदा विधायक के खिलाफ गैर जमानती वारंट का निष्पादन न करना, उन्हें विधानसभा सत्र में भाग लेने की अनुमति देना, खतरनाक और गंभीर मिसाल कायम पेश कर सकता है, जो निर्वाचित जनप्रतिनिधि ने जनता के विश्वास को खत्म करते हुए राज्य में न्यायिक प्रक्रिया प्रणाली की अखंडता कमजोर करता है.
हाईकोर्ट की तरफ से टिप्पणी की गई है कि निर्वाचित अधिकारी नैतिक आचरण और जवाबदेही के उच्चतम मानकों को बनाए रखें. ऐसा ना हो कि वह जनता की भलाई करने के अपने जनादेश के साथ विश्वासघात करें. इस मामले में एक कॉपी विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष जानकारी के लिए रखने के लिए विधानसभा के प्रमुख सचिव को भेजी जाए.
यूपी डीजीपी को भी हाईकोर्ट ने दिए निर्देश-
साथ ही प्रमुख महानिदेशक पुलिस को भी यह निर्देश दिया जाए कि वह अंसारी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट द्वारा पहले जारी किए गए गैर जमानती वारंट की तमिल सुनिश्चित करें. यदि वह अभी तक तमिल नहीं हुआ है तो अगली तारीख पर अनुपालन हलफनामा दायर किया जाएगा. इस मामले में 22 जुलाई के लिए हलफनामा सूचीबद्ध करने का निर्देश हाईकोर्ट कोर्ट ने दिया है.
हाईकोर्ट की टिप्पणी पर सपा विधायक ने क्या कहा-
फिलहाल इस मामले में शहर विधायक रफीक अंसारी से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने बताया कि 1995 में उन पर एक मामला दर्ज हुआ था, जिसमें वह काफी पहले बरी हो गए थे. इसके बाद पेश होने की उन्हें जरूरत नहीं लगी, जिस वजह से वह कोर्ट में हाजिर नहीं हुए.