मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महिला की शिकायत पर एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज बलात्कार के मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि दोनों अपनी सहमति और स्वेछा से 10 साल से अधिक समय से रिश्ते में थे। 2 जुलाई के अपने आदेश में जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने कहा कि यह मामला कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग लगता है। कोर्ट ने अपने आदेश में अंतिम चार्जशीट को निरस्त करने के आदेश जारी करते हुए अपने आदेश में कहा है कि 10 साल के रिश्ते में स्थापित यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जा सकता है।
महिला की शिकायत पर उसके पुरुष मित्र के खिलाफ दर्ज दुष्कर्म के मामले को यह कहते हुए हाईकोर्ट खारिज कर दिया कि दोनों ‘‘स्वेच्छा” से 10 साल से अधिक समय से रिश्ते में थे। आदेश में न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी ने कहा कि ये मामला कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग प्रतीत होता है।
कोर्ट ने कहा, दोनों सुशिक्षित है और अपनी स्वेछा से 10 वर्षों तक शारीरिक संबंध बनाए-
आदेश के अनुसार, महिला और पुरुष सुशिक्षित व्यक्ति हैं और उन्होंने 10 वर्षों से अधिक समय तक अपनी मर्जी से शारीरिक संबंध बनाए। अदालत के आदेश में कहा गया है कि उस व्यक्ति द्वारा महिला से शादी करने से इनकार करने के बाद उनका रिश्ता टूट गया। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि याचिकाकर्ता (पुरुष) के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से अंतिम चार्जशीट को निरस्त करने की मांग की थी-
याचिकाकर्ता नागेश्वर प्रसाद जैसल की तरफ से हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में बलात्कार और अपहरण के तहत दर्ज प्रकरण में पेश की गई अंतिम चार्जशीट को निरस्त करने की मांग की गयी थी। सुनवाई के दौरान एकलपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ साल 2021 में प्राथमिकी दर्ज की गयी थी।
लिव इन पार्टनर महिला का आरोप था कि शादी का वादा करके बनाया संबंध-
शिकायतकर्ता ने प्राथमिकी में याचिकाकर्ता पर आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता गर्मियों की छुट्टी में उसके गांव आता था। दोनों के बीच प्रेम संबंध स्थापित हो गए। महिला ने शिकायत में कहा था कि उसके पुरुष मित्र ने शादी का वादा करते हुए साल 2010 में उसके साथ यौन संबंध बनाए और फिर लगातार उसके साथ यौन संबंध स्थापित करता रहा।
हाईकोर्ट ने महिला के रेप के आरोपों को निरस्त करते हुए अपने फैसले में कहा कि जब शादी का वादा करके साल 2010 पहले पहली बार उसके लिव इन पार्टनर ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए तब ही महिला रेप की शिकायत दर्ज करा सकती थी।
शादी से इनकार के बाद महिला ने पुरुष मित्र पर लगाए थे बलात्कार के आरोप-
लिव इन पार्टनर महिला का आरोप था कि याचिकाकर्ता ने जब शादी से इंकार कर दिया तो उसने पुलिस में याचिकाकर्ता के खिलाफ थाने में बलात्कार की एफआईआर दर्ज करा दी। हालांकि 2 जुलाई को दिए अंतिम चार्जशीट को निरस्त करने से पहले कोर्ट ने दोनों परिवार को विवाह के लिए सहमत करने का प्रयास किया था।
न्यायाधीश ने कहा, “मेरी राय में, तथ्यात्मक परिस्थितियों के अनुसार, जैसा कि अभियोक्ता (महिला) ने अपनी शिकायत में और 164 सीआरपीसी के अपने बयान में भी बताया है, इस मामले को आईपीसी की धारा 375 के तहत परिभाषित बलात्कार का मामला नहीं माना जा सकता है और अभियोजन पक्ष द्वारा कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अलावा कुछ नहीं है।”
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आईपीसी की धारा 366 (महिला को शादी के लिए मजबूर करना) भी व्यक्ति के खिलाफ नहीं बनती। अदालत ने कहा, “इसलिए, बाद में याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज आईपीसी की धारा 366 के तहत अपराध भी रद्द किए जाने योग्य है।”