कोर्ट ने दिल्ली सरकार के वित्त विभाग को भी पक्षकार बनाया और सभी पक्षों को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है। याचिकाकर्ता वकील रुकमणि सिंह ने कहा कि भारतीय संविधान कहता है कि राज्य को सेक्युलर रहना है और इसलिए एक धर्म के लोगों को वेतन/मानदेय देने की दिल्ली सरकार की नीति संविधान के खिलाफ है।
अरविन्द केजरीवाल सरकार की मुसीबतें हैं कि कम होने का नाम नहीं ले रही हैं, पहले ED के समन ने मुख्यमंत्री को परेशान कर रखा था और अब एक अन्य मामले को लेकर हाईकोर्ट ने सरकार को एक नोटिस जारी किया है। दिल्ली हाईकोर्ट DELHI HIGH COURT ने आज गुरुवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड और गैर वक्फ बोर्ड के इमामों और मुअज्जिनों को सैलरी और मानदेय जारी करने के लिए राज्य की कंसोलिडेटेड फंड का इस्तेमाल करने की दिल्ली सरकार की पॉलिसी को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा जवाब-
मिडिया रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की बेंच ने दिल्ली सरकार के फाइनेंस और प्लानिंग डिपार्टमेंट और दिल्ली वक्फ बोर्ड से इस पर अपना जवाब देने को कहा है। यह याचिका वकील और सामाजिक कार्यकर्ता रुक्मणि सिंह ने दायर की है,
जिसमें दिल्ली सरकार और वक्फ बोर्ड को बोर्ड और गैर वक्फ बोर्डों के इमामों और मुअज्जिनों को कंसोलिडेटेड फंड से सैलरी देने से रोकने की मांग की गई है। कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर सरकार विचार करने की जरूरत है। इस मामले की सुनवाई अब जुलाई में होनी है।
दिल्ली सरकार के वकील संतोष कुमार त्रिपाठी के मौखिक अनुरोध के बाद पीठ ने दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग को भी जनहित याचिका में प्रतिवादी पक्ष के रूप में शामिल किया।
क्या कहा गया याचिका में?
याचिकाकर्ता वकील रुकमणि सिंह ने अपनी याचिका में कहा है कि दिल्ली सरकार एक विशेष धार्मिक समुदाय के कुछ व्यक्तियों को अन्य धार्मिक समुदाय के समान श्रेणी के व्यक्तियों की वित्तीय स्थिति पर विचार किए बिना सम्मान राशि देने की यह प्रथा सीधे राज्य की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति का उल्लंघन करती है। साथ ही यह भारत के संविधान के अनुच्छेद ARTICLE 14, 15(1) और 27, 266 और 282 का भी उल्लंघन करती है।
नहीं किया जा सकता फंड से विशेष समुदाय को भुगतान-
आगे कहा गया कि यह जनहित याचिका ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानती है जिसमें यह माना गया था कि इमामों को भुगतान करने के लिए संसाधनों का उपयोग करना वक्फ बोर्ड का कर्तव्य है जो उनके समाज में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इससे यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी नंबर 1 राज्य का कार्य संवैधानिक सिद्धांतों के साथ-साथ भारत के सुप्रीम कोर्ट फैसले के भी खिलाफ है। साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य के कंसोलिडेटेड फंड से किसी धर्म के एक विशेष समुदाय को भुगतान नहीं किया जा सकता है।