📦 पटनागढ़ पार्सल बम कांड: आरोपी पुंजीलाल मेहर को कोर्ट ने सभी आरोपों में दोषी ठहराया, उम्रकैद की सजा
पटनागढ़ न्यायालय के सत्र न्यायाधीश ने 2018 के बहुचर्चित पार्सल बम विस्फोट कांड में आरोपी पुंजीलाल मेहर को हत्या, हत्या की कोशिश, साक्ष्य मिटाने और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी करार दिया है। बुधवार को सुनाए गए फैसले में कोर्ट ने मेहर को उम्रकैद समेत विभिन्न धाराओं में कठोर सजा सुनाई।
📅 घटना का पृष्ठभूमि
यह दर्दनाक घटना 23 फरवरी, 2018 को ओडिशा के पटनागढ़ के ब्रह्मपुरा क्षेत्र में हुई थी, जब रवींद्र कुमार साहू के घर एक पार्सल के रूप में भेजा गया बम फटा। हादसे में सौम्य शेखर साहू और उनकी दादी जेममणि साहू की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि सौम्य की पत्नी रिमारानी गंभीर रूप से घायल हो गई थीं।
प्राथमिकी पटनागढ़ थाने में केस नंबर 35/2018 के तहत दर्ज की गई, जिसे बाद में क्राइम ब्रांच ने 23 मार्च 2018 को अपने हाथ में लेते हुए CB PS Case No. 7/2018 में तब्दील किया।
🔍 जांच और अभियोजन की प्रक्रिया
जांच का नेतृत्व तत्कालीन अपर पुलिस अधीक्षक (Crime Branch) अनिल कुमार दाश ने किया और इसकी निगरानी CID-CB के आईजी अरुण बोथरा ने की। जांच में परिस्थितिजन्य, वैज्ञानिक, इलेक्ट्रॉनिक, डिस्कवरी व पहचान परेड जैसे अहम साक्ष्य एकत्र किए गए।
अभियोजन पक्ष ने इस मामले में 62 गवाह, 100 दस्तावेज, और 51 भौतिक वस्तुएं कोर्ट के समक्ष पेश कीं। वहीं बचाव पक्ष ने तीन गवाहों (जिसमें स्वयं आरोपी भी शामिल था) और आठ दस्तावेज प्रस्तुत किए।
🧑⚖️ कोर्ट का निर्णय और सजा
सबूतों और दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने पुंजीलाल मेहर को सभी आरोपों में दोषी पाया। सजा के विवरण इस प्रकार हैं:
- धारा 302 IPC (हत्या) के तहत उम्रकैद और ₹50,000 का जुर्माना
- धारा 307 IPC (हत्या की कोशिश) के तहत 10 वर्ष की कठोर सजा और ₹20,000 जुर्माना
- धारा 201 IPC (साक्ष्य मिटाना) के तहत 7 वर्ष की कठोर सजा और ₹10,000 जुर्माना
- Explosive Substances Act की धारा 3 के तहत उम्रकैद और ₹50,000 जुर्माना
- Explosive Substances Act की धारा 4 के तहत कठोर कारावास और ₹10,000 जुर्माना
सभी सजाओं में डिफॉल्ट क्लॉज भी जोड़े गए हैं, यानी जुर्माना नहीं देने पर अतिरिक्त सजा।
👨⚖️ न्यायिक और कानूनी पक्ष
- विशेष लोक अभियोजक के तौर पर सी.आर. काणूंगो ने अभियोजन का नेतृत्व किया।
- बचाव पक्ष की ओर से वकील प्रमोद कुमार मिश्रा ने पैरवी की।
- क्राइम ब्रांच के एडीशनल एसपी बिजय कुमार मलिक प्रमुख जांच अधिकारी थे।
🔎 इस ऐतिहासिक फैसले ने न केवल पीड़ित परिवार को न्याय दिया, बल्कि यह भी स्पष्ट संदेश दिया कि तकनीकी और वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर जघन्य अपराधों में दोषियों को सजा दिलाई जा सकती है।
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