बलात्कार मात्र शारीरिक हमला नहीं, पीड़िता की आत्मा पर आघात: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के आरोपी की जमानत याचिका की खारिज

बलात्कार मात्र शारीरिक हमला नहीं, पीड़िता की आत्मा पर आघात: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के आरोपी की जमानत याचिका की खारिज

 

बलात्कार मात्र शारीरिक हमला नहीं, पीड़िता की आत्मा पर आघात: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के आरोपी की जमानत याचिका की खारिज

अमरावती | विधिक संवाददाता:
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के एक मामले में जमानत याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में सामान्य रूप से उदार दृष्टिकोण अपनाना समाजहित के प्रतिकूल होगा। न्यायालय ने कहा कि बलात्कार को केवल एक शारीरिक हमला नहीं माना जा सकता, यह पीड़िता की गरिमा और आत्मा पर गहरा प्रहार है।

न्यायमूर्ति टी. मल्लिकार्जुन राव की एकल पीठ ने यह आदेश अंतिम वर्ष के विधि छात्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिस पर ‘भारतीय न्याय संहिता’ (BNS) की विभिन्न धाराओं और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत गंभीर आरोप लगे हैं।


मामले की पृष्ठभूमि:

आरोपी याचिकाकर्ता पर आरोप है कि उसने एक तृतीय वर्ष की विधि छात्रा से विवाह और प्रेम का झांसा देकर छलपूर्वक और बलपूर्वक शारीरिक संबंध बनाए, और इस घटना का गुप्त रूप से वीडियो रिकॉर्ड भी किया। शिकायत के अनुसार, आरोपी ने अन्य व्यक्तियों को भी पीड़िता के साथ जबरन यौन संबंध के लिए प्रोत्साहित किया।

पीड़िता के अनुसार, आरोपी और उसके साथियों ने उस पर वीडियो सार्वजनिक करने की धमकी दी, जिससे वह मानसिक रूप से भयभीत हो गई और शिकायत करने में विलंब हुआ।


अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता की दलीलें:

आवेदक के अधिवक्ता दुव्वाड़ा रमेश ने तर्क दिया कि आरोपी निर्दोष है, जांच पूरी हो चुकी है, आरोप-पत्र दायर हो चुका है, और वह लंबे समय से न्यायिक हिरासत में है। उन्होंने शिकायत में देरी को याचिकाकर्ता के पक्ष में बताया।

ALSO READ -  हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के विकास के लिए जमीन सुरक्षित करने के लिए लोगों को बेदखल करने से पहले उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना चाहिए - सुप्रीम कोर्ट

राज्य का पक्ष:

लोक अभियोजक ने विरोध करते हुए कहा कि पीड़िता द्वारा लगाए गए आरोप अत्यंत गंभीर हैं और आरोपी इस अपराध में मुख्य भूमिका निभा चुका है। आरोप है कि उसने पीड़िता को ब्लैकमेल कर अन्य लोगों के साथ भी संबंध बनाने को विवश किया।


न्यायालय की टिप्पणी और निष्कर्ष:

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि—

बलात्कार जैसे अपराध की प्रकृति केवल शारीरिक नहीं होती, यह सामाजिक और मानसिक रूप से पीड़िता को तोड़ देती है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि—

ऐसे मामलों में यह अपेक्षित नहीं किया जा सकता कि पीड़िता प्रतिरोध अवश्य ही करे। कई बार परिस्थिति इतनी भयावह होती है कि पीड़िता मूक रह जाती है।

जमानत पर विचार करते हुए अदालत ने कहा:

  • आरोप अत्यंत गंभीर हैं और याचिकाकर्ता की भूमिका प्रथम दृष्टया सक्रिय रूप से संलिप्त प्रतीत होती है।
  • आरोपों की सत्यता पर इस स्तर पर चर्चा करना आवश्यक नहीं।
  • केवल आरोपपत्र दाखिल हो जाने या कारावास की अवधि को आधार बनाकर जमानत नहीं दी जा सकती।

अंतिम निर्णय:

न्यायालय ने जमानत याचिका को खारिज कर दिया।

मामला: Batha Vamsi बनाम The State Station House Officer
मामला संख्या: क्रिमिनल पिटीशन नं. 1986/2025
अधिवक्ता (आवेदक पक्ष): दुव्वाड़ा रमेश
अधिवक्ता (राज्य पक्ष): लोक अभियोजक

Translate »