प्रतिवर्ष विजयादशमी पर रावण दहन किया जाता है। रावण परम विद्वान व शक्तिशाली था। रावण ने न सिर्फ मनुष्यों बल्कि देवताओं को भी हराया था। यहां तक कि यमराज भी रावण से जीत नहीं पाए थे।
ज्यादातर लोगों को यही ज्ञात है कि रावण सिर्फ श्रीरामचंद्र जी से ही हारा था, लेकिन ये सच नहीं है।
हमरे ग्रंथो में बताया गया है की रावण श्रीरामचंद्र जी के अलावा शिवजी, राजा बलि, किष्किंधा नरेश बालि और सहस्त्रबाहु से भी पराजित हो चुका था।
आइये जानते है इन चारों से रावण कब और कैसे हारा था-
सहस्त्रबाहु अर्जुन से भी हारा रावण–
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब राक्षसराज रावण ने सभी राजाओं को जीत लिया, तब वह महिष्मती नगर (वर्तमान में महेश्वर) के राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन को जीतने की इच्छा से उनके नगर गया।
रावण ने सहस्त्रबाहु अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा। नर्मदा के तट पर ही रावण और सहस्त्रबाहु अर्जुन में भयंकर युद्ध हुआ।
अंत में सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को बंदी बना लिया।
जब यह बात रावण के पितामह (दादा) पुलस्त्य मुनि को पता चली तो वे सहस्त्रबाहु अर्जुन के पास आए और रावण को छोडऩे के लिए निवेदन किया। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को छोड़ दिया और उससे मित्रता कर ली।
राजा बलि के महल में रावण की हार–
धर्म ग्रंथों के अनुसार, पृथ्वी व स्वर्ग की जीतने के बाद रावण पाताल लोक को जीतना चाहता था। उस समय दैत्यराज बलि पाताल लोक के राजा थे।
एक बार रावण राजा बलि से युद्ध करने के लिए पाताल लोक में उनके महल तक पहुंच गया था। वहां पहुंचकर रावण ने बलि को युद्ध के लिए ललकारा, उस समय बलि के महल में खेल रहे बच्चों ने ही रावण को पकड़कर घोड़ों के साथ अस्तबल में बांध दिया था।
इस प्रकार राजा बलि के महल में रावण की हार हुई।
शिवजी से रावण की हार–
रावण बहुत शक्तिशाली था और उसे अपनी शक्ति पर बहुत ही घमंड भी था। रावण इस घमंड के नशे में शिवजी को हराने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंच गया था।
रावण ने शिवजी को युद्ध के लिए ललकारा, लेकिन महादेव तो ध्यान में लीन थे। रावण कैलाश पर्वत को उठाने लगा।
तब शिवजी ने पैर के अंगूठे से ही कैलाश का भार बढ़ा दिया, इस भार को रावण उठा नहीं सका और उसका हाथ पर्वत के नीचे दब गया।
बहुत प्रयत्न के बाद भी रावण अपना हाथ वहां से नहीं निकाल सका।
तब रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उसी समय शिवा ताण्डवस्त्रोत्र रच दिया। शिवजी इस स्रोत से बहुत प्रसन्न हो गए और उसने रावण को मुक्त कर दिया।
मुक्त होने के पश्चात रावण ने शिवजी को अपना गुरु बना लिया।
किष्किंधा नरेश बालि से रावण की हार–
एक बार रावण बालि से युद्ध करने के लिए पहुंच गया था। बालि उस समय पूजा कर रहा था। रावण बार-बार बालि को ललकार रहा था, जिससे बालि की पूजा में बाधा उत्पन्न हो रही थी।
जब रावण नहीं माना तो बालि ने उसे अपनी बाजू में दबा कर चार समुद्रों की परिक्रमा की थी।
बालि बहुत शक्तिशाली था और इतनी तेज गति से चलता था कि रोज सुबह-सुबह ही चारों समुद्रों की परिक्रमा कर लेता था। इस प्रकार परिक्रमा करने के बाद सूर्य को अर्घ्य अर्पित करता था।
जब तक बालि ने परिक्रमा की और सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया तब तक रावण को अपने बाजू में दबाकर ही रखा था। रावण ने बहुत प्रयास किया, लेकिन वह बालि की गिरफ्त से आजाद नहीं हो पाया। पूजा के बाद बालि ने रावण को छोड़ दिया था।