वर्चुअल सुनवाई में बीयर पीते दिखे वरिष्ठ अधिवक्ता, गुजरात हाईकोर्ट ने की अवमानना कार्यवाही, पद पुनर्विचार के आदेश

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वर्चुअल सुनवाई में बीयर पीते दिखे वरिष्ठ अधिवक्ता, गुजरात हाईकोर्ट ने की अवमानना कार्यवाही, पद पुनर्विचार के आदेश

अहमदाबाद | विधि संवाददाता
गुजरात हाईकोर्ट में वर्चुअल सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट भास्कर तन्ना के बीयर पीते हुए शामिल होने का एक वीडियो सामने आने के बाद न्यायपालिका की गरिमा और आचार संहिता को लेकर बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है।

जस्टिस ए.एस. सूपेहिया और जस्टिस आर.टी. वाच्छानी की खंडपीठ ने इसे न्यायालय की अवमानना मानते हुए उनके विरुद्ध कठोर रुख अपनाया है।


कोर्ट ने की अवमानना कार्यवाही की शुरुआत

पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता तन्ना का यह कृत्य “न्यायिक प्रक्रिया और संस्थान की गरिमा का अपमान” है। इस मामले में कोर्ट ने उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करते हुए उन्हें किसी भी वर्चुअल सुनवाई में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया है।


वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा छीने जाने की संभावना

कोर्ट ने अधिवक्ता तन्ना के “सीनियर एडवोकेट” पद पर पुनर्विचार का आदेश देते हुए कहा कि इस आचरण का युवा अधिवक्ताओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बेंच ने टिप्पणी की:

“इस प्रकार का आचरण न्याय व्यवस्था और कानून के शासन पर प्रतिकूल असर डालता है। जब वरिष्ठ अधिवक्ता इस तरह की लापरवाही और अनुशासनहीनता दिखाते हैं, तो यह पेशे के प्रति अवमाननापूर्ण रवैया माना जाएगा।”


मुख्य न्यायाधीश के समक्ष भेजा जाएगा मामला

बेंच ने यह आदेश गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजने का निर्देश दिया है और कहा है कि अनुमति मिलने पर इसे अन्य पीठों के समक्ष भी रखा जाएगा, ताकि अधिवक्ता के वर्चुअल उपस्थिति पर प्रतिबंध व्यापक रूप से लागू किया जा सके।

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पिछले सप्ताह भी हुआ था टॉयलेट से जुड़ा मामला

गौरतलब है कि यह पहला मामला नहीं है जब वर्चुअल सुनवाई के दौरान न्यायालय की मर्यादा भंग हुई हो। पिछले सप्ताह एक अन्य व्यक्ति का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह टॉयलेट सीट पर बैठे हुए सुनवाई में हिस्सा ले रहा था।

इन घटनाओं ने अदालतों में वर्चुअल सुनवाई की शिष्टता और अनुशासन पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं।


हाईकोर्ट का स्पष्ट संदेश: गरिमा से कोई समझौता नहीं

गुजरात हाईकोर्ट का यह निर्णय न्यायिक व्यवस्था की गरिमा बनाए रखने की दिशा में एक सख्त और स्पष्ट संदेश है कि चाहे फिजिकल हो या वर्चुअल मंच, न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने की मर्यादा और आचरण से कोई समझौता नहीं किया जाएगा

यह मामला न केवल वरिष्ठ अधिवक्ताओं की जवाबदेही और आदर्श प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी को रेखांकित करता है, बल्कि भविष्य में वर्चुअल मंचों पर पेशेवर आचरण के लिए भी एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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