सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म के अपवाद का हवाला देते हुए दर्ज एफआईआर को किया निरस्त
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अपवाद-2 का संदर्भ लेते हुए एक व्यक्ति के खिलाफ उसकी पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई दुष्कर्म की प्राथमिकी (FIR) को निरस्त कर दिया।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने अपीलकर्ता कुलदीप सिंह के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई आपराधिक मामला नहीं पाया।
हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध अपील स्वीकार
शीर्ष अदालत ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें पीड़िता के चचेरे भाई की ओर से दर्ज 14 जून 2022 की एफआईआर को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि जांच के दौरान यह स्थापित हुआ कि पीड़िता ने अपनी स्वतंत्र इच्छा से अपीलकर्ता के साथ विवाह किया था।
सुप्रीम कोर्ट की कानूनी व्याख्या
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत तर्क सही है कि IPC की धारा 375 के अपवाद-2 के अनुसार, किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ सहमति से स्थापित शारीरिक संबंध को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। अतः इस मामले में आरोपी के विरुद्ध दुष्कर्म (धारा 376) का अभियोग कायम नहीं रह सकता।
इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि अपीलकर्ता द्वारा अपनी वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए दायर याचिका में पीड़िता ने कोई ऐसा दावा नहीं किया, जिससे यह संकेत मिले कि विवाह बलपूर्वक संपन्न कराया गया था या उसमें जबरदस्ती की गई थी।
विवाह और सुरक्षा याचिका का संदर्भ
अपीलकर्ता ने अपने पक्ष में यह भी तर्क दिया कि उसने और पीड़िता ने 15 जून 2022 को अपने परिजनों की इच्छा के विरुद्ध सिख रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था। विवाह के उपरांत, पारिवारिक विरोध को देखते हुए, नवविवाहित दंपति ने 16 जून 2022 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए एक याचिका दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट ने दंपति को सुरक्षा प्रदान की थी।
हालांकि, अगस्त 2022 में पीड़िता अपने माता-पिता के घर लौट गई और बयान बदलते हुए अपीलकर्ता पर दुष्कर्म का आरोप लगाया।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष
न्यायालय ने समस्त तथ्यों का अवलोकन करने के पश्चात पाया कि अपीलकर्ता के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी कानूनी रूप से अस्थिर है और IPC की धारा 375 के तहत अपवाद के दायरे में आती है। अतः एफआईआर को निरस्त करते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वैवाहिक संबंधों के संदर्भ में ऐसे आरोपों को स्थापित करने हेतु ठोस साक्ष्य की आवश्यकता होती है।
Leave a Reply