सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की उस आपत्ति को खारिज कर दिया, जिसमें एक न्यायिक अधिकारी की ई-रिक्शा लाइसेंस आवंटन रिपोर्ट की सत्यता पर सवाल उठाया गया था।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार के वकील की आपत्ति पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा,
“आपके अधिकारी दबाव में हो सकते हैं, लेकिन हमारी न्यायपालिका नहीं।”
माथेरान में ई-रिक्शा आवंटन को लेकर विवाद
माथेरान, जो मुंबई से करीब 83 किलोमीटर दूर स्थित एक हिल स्टेशन है, वहां वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध है।
महाराष्ट्र सरकार के वकील ने अदालत में दलील दी कि न्यायिक अधिकारी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पूरी तरह से तथ्यों पर आधारित नहीं हो सकती। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि यह रिपोर्ट एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी द्वारा तैयार की गई है, और इसे चुनौती देना उचित नहीं होगा।
आवंटन प्रक्रिया की पुनः समीक्षा का निर्देश
राज्य सरकार की दलील पर अदालत ने ई-रिक्शा लाइसेंस आवंटन प्रक्रिया की दोबारा समीक्षा के लिए दो सप्ताह का समय दिया और राज्य सरकार से इस संबंध में नया प्रस्ताव प्रस्तुत करने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने 13 अगस्त 2024 की रिपोर्ट पर सवाल उठाने वाले वकील की दलील को भी खारिज कर दिया और मामले की अगली सुनवाई 19 मार्च को तय की।
ई-रिक्शा नीति में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
- सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2023 में निर्देश दिया था कि ई-रिक्शा केवल उन लोगों को दिए जाएं, जो पहले हाथ-रिक्शा चलाते थे, ताकि उनकी रोजी-रोटी प्रभावित न हो।
- अप्रैल 2024 में, कोर्ट ने माथेरान में ई-रिक्शा की संख्या 20 तक सीमित कर दी और आदेश दिया कि यह केवल स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के परिवहन के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे।
- जुलाई 2023 में, अदालत ने रायगढ़ के प्रधान जिला न्यायाधीश को इस विवाद की जांच करने का निर्देश दिया था।
आरोप – असली हकदारों को ई-रिक्शा नहीं मिले
कुछ आवेदकों ने सुप्रीम कोर्ट में यह आरोप लगाया था कि ई-रिक्शा वास्तविक हाथ-रिक्शा चालकों को नहीं, बल्कि होटल मालिकों और अन्य व्यवसायियों को आवंटित कर दिए गए।
माथेरान – एक ‘इको-सेंसिटिव जोन’
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी इस तथ्य को रेखांकित किया था कि माथेरान को विशेष दर्जा प्राप्त है और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 4 फरवरी 2003 को एक अधिसूचना जारी कर इसे ‘इको-सेंसिटिव ज़ोन’ घोषित किया था।
अब सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी के बाद महाराष्ट्र सरकार को ई-रिक्शा लाइसेंस आवंटन प्रक्रिया की पुनः समीक्षा करनी होगी।
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