सर्वोच्च न्यायालय ने ‘इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस’ (इस्कॉन) कोलकाता के पदाधिकारियों को इस्कॉन बेंगलुरु के पदाधिकारियों के खिलाफ बस चोरी का ‘‘तुच्छ, गैर-जिम्मेदाराना और निरर्थक’’ मामला दायर करने के लिए फटकार लगाई।
शीर्ष अदालत ने व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग की भी कड़ी निंदा की।
सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के पदाधिकारियों पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा कि इस मामले को गंभीरता से देखा जाना चाहिए क्योंकि वैश्विक आध्यात्मिक नेता होने का दावा करने वाले लोग व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने और अपने अहंकार को पोषित करने के लिए इस तरह की चीजों में लिप्त हैं।
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आठ साल की देरी के बाद इस्कॉन कोलकाता द्वारा दायर की गई शिकायत कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग थी।
पीठ ने कठोर टिप्पड़ी में कहा कि, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रतिवादी-शिकायतकर्ता द्वारा आठ साल की अत्यधिक अस्पष्ट देरी के बाद दायर की गई शिकायत और कुछ नहीं बल्कि अपीलकर्ताओं के साथ व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए कानून की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग था। ’’
पीठ ने कहा-
‘‘….और इस तरह के दुर्भावनापूर्ण अभियोजन को जारी रखना भी कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, विशेष रूप से तब जब न तो शिकायत में लगाए गए आरोप में और न ही आरोपपत्र में, अपीलकर्ताओं के खिलाफ किसी भी प्रथम दृष्टया मामले का खुलासा होता है। ’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस्कॉन बेंगलुरु के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ लगाए गए आरोप इतने बेतुके और असंभव हैं कि कोई भी विवेकशील व्यक्ति कभी भी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता है कि उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए पर्याप्त आधार है।
पीठ ने कहा, ‘‘हम यह जोड़ना चाहते हैं कि जिस तरह खराब सिक्के अच्छे सिक्कों को चलन से बाहर कर देते हैं, खराब मामले अच्छे मामलों को समय पर सुनवाई से बाहर कर देते हैं। अदालतों में तुच्छ मामलों के प्रसार के कारण, वास्तविक मामले पीछे हो जाते हैं और उन पर वर्षों तक सुनवायी नहीं होती।’’
पीठ ने इस्कॉन बेंगलुरु के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी और कहा, “जो पक्ष तुच्छ, गैरजिम्मेदाराना और निरर्थक मुकदमेबाजी शुरू करता है और जारी रखता है या जो अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग करता है, उस पर अनुकरणीय जुर्माना लगाया जाना चाहिए, ताकि अन्य लोग ऐसा नहीं करें। ’’
शिकायत के अनुसार, इस्कॉन कोलकाता के शाखा प्रबंधक द्वारा 30 सितंबर, 2006 को बालीगंज पुलिस थाना, कोलकाता के प्रभारी अधिकारी को 2001 में एक बस की कथित चोरी के संबंध में एक पत्र लिखा गया था। हालांकि, पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इसके बाद, इस्कॉन कोलकाता के पदाधिकारियों ने दावा किया कि उन्हें पता चला है कि बस इस्कॉन, बेंगलुरु के अध्यक्ष मधु पंडित दास के अवैध कब्जे में है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस्कॉन कोलकाता के अध्यक्ष अद्रिधरन दास ने मधु पंडित दास और अन्य के साथ एक आपराधिक साजिश रची थी, और बाद में दास द्वारा उस वाहन को चुराकर बेंगलुरु ले जाया गया था।
चूंकि संबंधित पुलिस थाने को लिखे गए पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, इसलिए 10 फरवरी, 2009 को अलीपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में शिकायत दर्ज करके जांच का अनुरोध किया गया।
अपीलकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने इस्कॉन बेंगलुरु के पदाधिकारियों के खिलाफ शुरू किए गए अभियोजन को केवल चोरी के मामले की आड़ में उन्हें परेशान करने का प्रयास बताया था। दीवान ने कहा कि इस्कॉन कोलकाता के पदाधिकारी “व्यक्तिगत दुश्मनी’’ निकालना चाहते थे क्योंकि ‘हरे कृष्ण मूवमेंट’ की बेंगलुरु शाखा के तत्वावधान में लगभग 30 इस्कॉन केंद्र खोले गये थे।