Supreme Court Of India 17112024

सुप्रीम कोर्ट ने निवेशक धोखाधड़ी मामले में जमानत के लिए 3 करोड़ रुपये जमा करने की शर्त को खारिज करते हुए जमानत बहाल की

“न्यायालय को ऐसी शर्तें नहीं लगानी चाहिए जो न्याय से वंचित करने के समान हों।”

सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने मद्रास हाईकोर्ट Madras High Court के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें जमानत के लिए एक आवेदक को 3 करोड़ रुपए जमा कराने की शर्त रखी गई थी। हालांकि, कोर्ट ने आरोपी को निर्देश दिया कि वह अपने पति के स्वामित्व वाली संपत्तियों पर किसी तीसरे पक्ष के अधिकार या किसी तरह का कोई बोझ न डाले।

यह अपील मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 04.07.2024 के आदेश को चुनौती देती है, जिसके अनुसार दिनांक 21.03.2024 के आदेश में शर्त में संशोधन के लिए वर्तमान अपीलकर्ता द्वारा दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 21.03.2024 के आदेश के तहत अपीलकर्ता को इस शर्त पर जमानत दी गई थी कि अपीलकर्ता उस तिथि से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर 3 करोड़ रुपये की राशि जमा करेगा।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने फैसला सुनाया कि जमा कराने की ऐसी शर्तें न्याय को प्रभावी रूप से नकारती हैं और निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए वैकल्पिक उपाय करने का निर्देश दिया।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा और प्रतिवादी की ओर से एएजी वी कृष्णमूर्ति पेश हुए।

यह मामला तब उठा जब अपीलकर्ता पूर्णिमा ने 21 मार्च, 2024 के आदेश में लगाई गई शर्त को संशोधित करने की अपनी याचिका को हाईकोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को चुनौती दी। हाईकोर्ट ने उसे इस शर्त पर जमानत दी थी कि वह आठ सप्ताह के भीतर 3 करोड़ रुपए जमा कराए।

ALSO READ -  Hindenburg Row: केंद्र अदाणी-हिंडनबर्ग मामले में जांच समिति बनाने के लिए राजी, सुप्रीम कोर्ट में 17 फरवरी को फिर सुनवाई

अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता श्री मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि अपीलकर्ता के पति ने आत्महत्या कर ली है क्योंकि वह जमाकर्ताओं को आवश्यक राशि का भुगतान करने में असमर्थ था। उन्होंने कहा कि यद्यपि उसने संपत्ति बेचने का प्रयास किया है, लेकिन वह कोई खरीदार नहीं ढूंढ पाई और आवश्यक राशि नहीं जुटा पाई। संपत्ति बेचने और धन जुटाने के प्रयासों के बावजूद, वह शर्त पूरी नहीं कर सकी।

न्यायालय ने कहा, “न्यायालय को ऐसी शर्तें नहीं लगानी चाहिए जो न्याय से वंचित करने के समान हों।”

निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए न्यायालय ने पूर्णिमा को अपने दिवंगत पति की संपत्तियों पर तीसरे पक्ष के अधिकार या भार बनाने से रोक दिया। न्यायालय ने आगे कहा कि तमिलनाडु जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण (वित्तीय प्रतिष्ठानों में) अधिनियम, 1997, राज्य को निवेशकों का बकाया वसूलने के लिए वित्तीय चूककर्ताओं की संपत्तियों को कुर्क करने और नीलाम करने की अनुमति देता है।

अपील स्वीकार करते हुए न्यायालय ने 3 करोड़ रुपये जमा करने की शर्त को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि बिना ऐसी शर्तों के जमानत दी जाए। लंबित आवेदनों का भी निपटारा कर दिया गया।

न्यायालय ने आदेश दिया “अपीलें स्वीकार की जाती हैं। अपीलकर्ता द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष दिनांक 21.03.2024 के आदेश में संशोधन के लिए दायर आवेदन स्वीकार किया जाता है। जमानत देने के लिए पूर्व शर्त के रूप में 3 करोड़ रुपये जमा करने की शर्त को रद्द किया जाता है और उसे रद्द किया जाता है”।

वाद शीर्षक – पूर्णिमा बनाम राज्य

Translate »
Scroll to Top