शीर्ष अदालत ने गुरुवार को कहा है कि किसी मृत कर्मचारी की दूसरी पत्नी का बेटा होने के आधार पर उसे अनुकंपा नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा है कि ऐसा करना आवेदक के मौलिक अधिकारों का हनन होगा और उसके परिवार की गरिमा के खिलाफ होगा।
न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठने कहा कि इस तरह की नियुक्ति से इनकार करने की नीति भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद-16 (2) का उल्लंघन है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि नीति, मृत कर्मचारी के बच्चों को वैध व नाजायज के रूप में वर्गीकृत करके और केवल वैध वंशज के अधिकार को मान्यता देकर किसी व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव नहीं कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि स्कीम और अनुकंपा नियुक्ति के नियम संविधान के अनुच्छेद-14 के जनादेश का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं। जब हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-16 में एक विवाह से पैदा हुए बच्चे को मान्यता दी गई है, जबकि पहली शादी वैध होती है, ऐसे में यदि नीति या नियम ऐसे बच्चे को अनुकंपा नियुक्ति का लाभ लेने से रोकता है तो यह अनुच्छेद-14 का उल्लंघन होगा।
शीर्ष अदालत ने पटना उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ मुकेश कुमार द्वारा दायर दायर एक अपील की स्वीकार किया जिसमें मृतक जगदीश हरिजन की दूसरी पत्नी के बेटे होने के कारण रेलवे में अनुकंपा नियुक्ति के उनके दावे को खारिज कर दिया था।
शीर्ष अदालत की पीठ ने नोट किया कि यह मुद्दा भारत संघ बनाम वीआर त्रिपाठी ((2019) 14 एससीसी 646) के निर्णय से कवर है, जिसमें ऐसे ही मामले में कोर्ट ने कहा था कि केवल इस आधार पर की दूसरी पत्नी के बच्चा हुआ है यह अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता है।
इसके अलावा भारत के सर्वोच्च कोर्ट ने भारत संघ बनाम पंकज कुमार शर्मा में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले से सहमति व्यक्त की, जिसमें कहा गया था कि अनुकंपा नियुक्ति योजना के तहत रोजगार से इनकार करने के लिए वंश का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति नरसिम्हा द्वारा लिखे गए इस फैसले में कहा गया है कि सर्कुलर ने एक वर्ग के बीच दो श्रेणियां बनाई हैं। फैसले में कहा गया है कि एक बार जब कानून ने दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चे को वैध मान लिया है तो उन्हें नीति के तहत विचार किए जाने से बाहर करना असंभव होगा। वैध बच्चों के एक वर्ग का बहिष्करण एक मायने में मृत कर्मचारी के परिवार की गरिमा सुनिश्चित करने के उद्देश्य को विफल कर देगा।
अदालत ने यह भी बताया कि अनुकंपा नियुक्ति अनुच्छेद-16 के तहत संवैधानिक गारंटी का अपवाद है, इसलिए अनुकंपा नियुक्ति की नीति संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के जनादेश के अनुरूप होनी चाहिए। अर्थात अनुकंपा नियुक्ति की नीति, जिसमें कानून का बल हो, में वंशानुक्त्रस्म सहित अनुच्छेद 16(2) में वर्णित किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।
अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने अपील की अनुमति दी और अधिकारियों को यह जांचने का निर्देश दिया कि क्या अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कानून के अनुसार अन्य सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है। आवेदन पर विचार करने की प्रक्रिया आज से तीन महीने की अवधि के भीतर पूरी की जानी है।
केस टाइटल – मुकेश कुमार बनाम भारत संघ एवं अन्य
केस नंबर – CIVIL APPEAL NO. OF /2022 ARISING OUT OF SLP(C) NO. 18571/2018
कोरम – न्यायमूर्ति यूयू ललित न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा