दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला: “स्थान नहीं, संबंध मायने रखता है” — दहेज प्रताड़ना मामले में आरोपी पति की जमानत याचिका खारिज

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दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला: “स्थान नहीं, संबंध मायने रखता है” — दहेज प्रताड़ना मामले में आरोपी पति की जमानत याचिका खारिज

नई दिल्ली | विधिक संवाददाता:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दहेज प्रताड़ना से जुड़े एक अत्यंत गंभीर प्रकरण में आरोपी पति की जमानत याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि आत्महत्या के स्थान की नहीं, बल्कि उत्पीड़नकारी वैवाहिक संबंध की कानूनी प्रासंगिकता अधिक महत्त्वपूर्ण होती है।

जस्टिस गिरीश काथपालिया की एकल पीठ के समक्ष प्रस्तुत इस मामले में महिला ने अपने मायके में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। अभियुक्त पति ने अदालत में यह तर्क प्रस्तुत किया कि चूंकि आत्महत्या ससुराल के बाहर मायके में हुई, तथा मृत्यु के तत्काल पहले प्रत्यक्ष दहेज मांग अथवा प्रताड़ना का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, अतः उस पर धारा 304B (दहेज मृत्यु) के अंतर्गत अभियोजन नहीं बनता।

अदालत ने इस तर्क को ठुकराते हुए कहा कि —

दहेज की ज्वाला केवल ससुराल तक सीमित नहीं होती। यदि विवाहिता को वैवाहिक जीवन के दौरान निरंतर मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया हो, तो वह प्रताड़ना मायके तक उसका पीछा करती है और उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित कर सकती है।

धारा 304B की कानूनी व्याख्या करते हुए न्यायालय ने कहा —

‘मृत्यु से ठीक पहले’ (soon before death) का अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता कि अंतिम क्षणों में ही प्रताड़ना होनी चाहिए। यह प्रताड़ना एक सतत प्रक्रिया हो सकती है, जो विवाहिता के मानसिक संतुलन को इस हद तक प्रभावित कर दे कि वह जीवन समाप्त करने का कदम उठा ले।

न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि—

स्थान परिवर्तन से अभियुक्त की जिम्मेदारी समाप्त नहीं होती। यदि विवाहिता को लगातार उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो, तो उसका मायके जाना भी दहेज प्रताड़ना से बचने का प्रयास हो सकता है — लेकिन जब वह वहीं आत्महत्या कर ले, तो इसका संबंध पूर्ववर्ती प्रताड़ना से माना जाएगा।

अंततः, अदालत ने आरोपी पति की जमानत याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि अपराध की गंभीरता, साक्ष्यों की प्रकृति एवं कानूनी सिद्धांतों के आलोक में आरोपी को राहत नहीं दी जा सकती।

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