ऐसे मामलों में संरक्षण देने से गलत काम करने वालों को बढ़ावा मिलेगा और भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सहमति संबंध में रह रहे पंजाब निवासी जोड़े को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि व्यक्ति पहले से ही शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में संरक्षण देने से गलत काम करने वालों को बढ़ावा मिलेगा और भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
घर से भाग कर शादी करने वाले प्रेमी जोड़ों की सुरक्षा से जुड़े मामलों पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला दिया. अब प्रेमी जोड़े सुरक्षा की गुहार के लिए सीधे हाइकोर्ट में याचिका दाखिल नहीं कर पाएंगे. हाईकोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ को दिशा निर्देश जारी किए.
बुधवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ को 30 दिन के अंदर मैकेनिज्म बनाना होगा. जस्टिस संदीप मोदगिल ने दिए आदेश और अब लव मैरिज कपल्स को पुलिस स्तर पर सुरक्षा मिलेगी और कोर्ट जाने की जरूरत कम ही पड़ेगी.
जस्टिस संदीप मौदगिल ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार कानून के दायरे में होना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में याचिकाओं को स्वीकार करने से द्विविवाह जैसी अवैध प्रथाओं को बढ़ावा मिलेगा, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत अपराध है.
कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया न केवल संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, बल्कि प्रशासनिक तंत्र में दक्षता और संवेदनशीलता की संस्कृति को भी बढ़ावा देगी. कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया का पालन होने पर गंभीर और गंभीर खतरे के मामलों में ही हाई कोर्ट या अन्य अदालतों में याचिकाएं दाखिल होंगी.
कोर्ट के आदेशों के अनुसार, जोड़ों को पहले स्थानीय पुलिस अधिकारियों से संपर्क करना होगा और यदि वह असंतुष्ट हैं तो हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकेंगे. कोर्ट ने दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा कि ऐसे जोड़ों को पहले स्थानीय पुलिस में नोडल पुलिस अधिकारियों से संपर्क करना होगा. ये अधिकारी एएसआई के पद से कम नहीं होगा. तीन दिनों के भीतर जोड़े की एप्लीकेशन पर निर्णय लेगा. यदि निर्णय से असंतुष्ट हैं, तो युगल अगले तीन दिनों के भीतर डीएसपी रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता वाले अपीलीय प्राधिकरण से संपर्क कर सकते हैं.
पश्चिमी संस्कृति को अपना रहा है भारत –
कोर्ट ने कहा कि “विवाह एक पवित्र रिश्ता है”. इसके कानूनी परिणाम हैं और इससे सामाजिक सम्मान भी जुड़ा है.
उन्होंने कहा, “हमारे देश में, इसकी गहरी सांस्कृतिक उत्पत्ति के साथ, नैतिकता और नैतिक तर्क पर महत्वपूर्ण जोर दिया जाता है. हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया, हमने पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर दिया, जो भारतीय संस्कृति से काफी अलग है.”
कोर्ट ने कहा, भारत के एक हिस्से ने आधुनिक जीवनशैली को अपनाया है, जिसे लिव-इन रिलेशनशिप कहा जाता है. संरक्षण याचिका एक जीवित जोड़े ने दायर की थी, जिसमें से एक पहले से ही शादीशुदा था और उसके बच्चे भी थे. दंपति को अपने रिश्तेदारों से खतरा होने की आशंका थी.
न्यायालय ने श्रीमती अनीता और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए रेखांकित किया कि कोई भी कानून का पालन करने वाला नागरिक जो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पहले से ही विवाहित है, वह अवैध संबंध के लिए इस न्यायालय से संरक्षण की मांग नहीं कर सकता है, जो सामाजिक ताने-बाने के दायरे में नहीं आता है.
कोर्ट ने कहा कि डीएसपी को सात दिनों के भीतर उनकी अपील पर निर्णय लेना होगा. डीएसपी के निर्णय से असंतुष्ट होने के बाद ही युगल हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. हाई कोर्ट के अनुसार, इन उपायों को जब लागू किया जाएगा, तो इससे न केवल संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि प्रशासनिक तंत्र के भीतर दक्षता और करुणा की संस्कृति को भी बढ़ावा मिलेगा.
कोर्ट ने इन्हीं टिप्पणियों के साथ याचिका खारिज कर दी.
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