दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को अपने एक फैसले में कहा कि हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा खारिज किए जाने के कारणों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने कहा कि यह संबंधित लोगों के हितों के खिलाफ होगा और इससे उनकी नियुक्ति प्रक्रिया बाधित भी हो सकती है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने उस आदेश को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सिफारिशों को स्वीकार करने से इनकार करते हुए विस्तृत कारण दिए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को निर्देश देने की मांग की गई थी।
जानकारी हो की पूर्व में न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की एकल पीठ ने 27 मई को अपने आदेश में कहा, “किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पदोन्नति के लिए संस्तुतियाँ संबंधित उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा की जाती हैं। संस्तुतियों पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा विचार किया जाता है और कॉलेजियम बैठक के परिणाम माननीय सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर डाले जाते हैं। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए अपेक्षित योग्यताएँ भारत के संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत निर्धारित की गई हैं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय का कॉलेजियम उच्च न्यायालय के कॉलेजियम की संस्तुतियों को स्वीकार करने से पहले कई कारकों पर विचार करता है। यह न्यायालय माननीय सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की व्यक्तिपरक संतुष्टि पर अपील नहीं कर सकता।”
ज्ञात हो ही पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने राकेश कुमार गुप्ता द्वारा दायर याचिका “न्यायिक समय की पूरी बर्बादी” कहते हुए कहा की गुप्ता के पास याचिका को बनाए रखने का कोई अधिकार नहीं था। 25,000 रुपए के जुर्माने के साथ याचिका खारिज कर दी।
अब इन आधार पर फैसले को दी जा सकती है चुनौती-
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति एकीकृत, परामर्शी और गैर-प्रतिकूल प्रक्रिया है, जिसे नामित संवैधानिक अधिकारियों के साथ परामर्श की कमी या नियुक्ति के मामले में पात्रता की किसी भी शर्त की कमी या चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की सिफारिश के बिना किए गए ट्रांसफर के आधार पर ही कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
नियुक्ति प्रक्रिया पर पड़ेगा असर: दिल्ली हाईकोर्ट-
कोर्ट ने कहा, “इसके अलावा, अस्वीकृति के कारणों का पता चलने से उन लोगों के हितों और प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा जिनके नामों की सिफारिश हाईकोर्टों ने की है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उस जानकारी के आधार पर विचार-विमर्श और निर्णय लेता है, जो उस व्यक्ति के लिए निजी है। यदि ऐसी जानकारी सार्वजनिक की जाती है, तो इसका असर नियुक्ति प्रक्रिया पर पड़ेगा।”
राकेश कुमार गुप्ता ने दायर की थी याचिका-
ज्ञात हो की यह याचिका राकेश कुमार गुप्ता ने दायर की थी। राकेश ने याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति के लिए विचार किए गए मानदंडों या योग्यता के बारे में विवरण मांगा था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा लंबित, सिफारिश के निपटान से संबंधित मासिक डेटा प्रकाशित करने की भी मांग की थी। उनका कहना था कि पिछले साल हाईकोर्ट में जजों की पदोन्नति के संबंध में हाईकोर्ट द्वारा की गई सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अस्वीकार करने का प्रतिशत लगभग 35.29% था, जबकि 2021 में यह प्रतिशत केवल 4.38% था। उन्होंने कहा कि अस्वीकृति की इतनी अधिक दर बेहद परेशान करने वाली है।