कलकत्ता उच्च न्यायलय ने महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा है कि पाल-पोसकर बड़ा करने पर सौतेले पिता को भी गुजारा भत्ते का हक है।
न्यायमूर्ति कौशिक चंदा ने अपने आदेश में कहा कि एक जैविक मां जिसने पुनर्विवाह किया है, उसे हमेशा अपने बेटे से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है। आदेश में कहा गया, ‘CrPC, 1973 की धारा-125 के तहत माता-पिता को भरण-पोषण का भुगतान करने का कानूनी दायित्व बच्चों के नैतिक दायित्व से उत्पन्न होता है। यह अपने माता-पिता के प्रति बच्चों के पारस्परिक दायित्व की मान्यता में है, जिन्होंने उनकी बेहतरी के लिए अत्यधिक बलिदान दिया है और उन्हें बिना शर्त प्यार और स्नेह के साथ पाला है।’
हाई कोर्ट में एक व्यक्ति की तरफ से यह मामला दायर किया गया था। उसने तीन साल की उम्र में अपने जैविक पिता को खो दिया था। मिल में काम करने वाली उसकी मां ने वहीं के एक विधुर कर्मचारी से शादी कर ली थी, जिसकी पहली पत्नी से एक बेटा व दो बेटियां थीं। वह सौतेले पिता के घर में पलकर बड़ा हुआ और बाद में उसी मिल का मैनेजर बन गया। फिर उसने शादी की और पत्नी को लेकर वहां से चला गया। उसकी दो बेटियां हैं।
2016 में उसकी मां और सौतेले पिता ने गुजारा भत्ते के लिए मामला दायर किया। स्थानीय एक अदालत ने 2018 में उस व्यक्ति को अपने माता-पिता को मासिक तौर पर 2500-2500 रूपये देने का आदेश दिया। पुत्र ने इस आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि उसकी उतनी कमाई नहीं है और उसकी दो बेटियां भी हैं।
मां और सौतेले पिता पर है बेटे की पत्नी की हत्या का आरोप – इसके बाद कोरोना काल में उसकी नौकरी चली गई। 2020 में उसकी पत्नी की संदिग्ध हालात में जलकर मौत हो गई। व्यक्ति की शिकायत पर पुलिस ने उसके सौतेले पिता और मां को गिरफ्तार कर लिया। सौतेले पुत्र ने हाई कोर्ट में मामला दायर कर कहा कि उसे उन लोगों को गुजारा भत्ता देने को नहीं कहा जा सकता, जो उसकी पत्नी की मौत के मामले में आरोपित हैं।
अस्तु हाई कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी के तहत माता-पिता को गुजारा भत्ते का भगतान करने का कानूनी दायित्व बच्चों के नैतिक दायित्व से उत्पन्न होता है। यह अपने माता-पिता के प्रति बच्चों के पारस्परिक दायित्व को मान्यता देता है, जिन्होंने उनके भले के लिए बहुत त्याग किया और बिना शर्त प्यार और स्नेह के साथ उनका पालन-पोषण किया है।